जनक नन्दिनी
जनक नन्दीनी समझ न पायी, भाग्य लिखा जो लेख था । जीवन मे वनवास लिखा था, ये ह्रदय चाहे नेक
Read Moreजनक नन्दीनी समझ न पायी, भाग्य लिखा जो लेख था । जीवन मे वनवास लिखा था, ये ह्रदय चाहे नेक
Read Moreरियो में बेटियों की, देखिए ऐसी चली है आंधी साक्षी ने कांस्य और पी वी सिंधु जीती है चांदी मस्तक
Read Moreकभी बँद करूँ मैं मुठ्ठी, कभी बँद मुठ्ठी मैं खोलूँ… क्या ढूंढ़ती हूँ इनमें, ये राज कैसे बोलूं ! हाथों
Read Moreकृष्ण जन्माष्टमी बिशेष अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए दुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज
Read Moreएक उदास सी शाम में, अंधेरों के पीछे से , जब शिद्दद्त से महसूस किया मैंने एक अधूरी याद का
Read Moreरोको अब यह अत्याचार काटे पेड हजार हजार खंडित धरती घटता पानी और प्रदूषित हुई बयार मानव कुछ तो सोच
Read Moreव्यथित तरू …………………. धरा पर जीवन के अंकुरण से सदैव रहा हूँ तत्पर असंख्य झंझावातों से लड़ता खड़ा रहा अडिग
Read Moreकितने क्षण और हैं तेरी प्रतीक्षा केे, रात्री की निद्रा पर अंकुश सा लग गया है, प्रेम के कारण मैं तुम्हें
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