कविता : ‘सुर्ख गुलाब’
हवाओं में , बिखरी है एक खास महक जैसे बिखेर दिया हो कोई अनगिनत सुर्ख गुलाब ……….! रेत के घरौंदों
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Read Moreबिखरी हुई कविताओं के साथ , यूँ ही जब होती हूँ दो-चार अनायास ही बढ़ जाती है ललक कुछ नया
Read Moreनदियाँ करती कलरव, पंक्षी का गुंजार रहा।। नीली चादर से देखो, ढ़का सारा आसमान रहा।। पीली सरसों की फूलों से,
Read Moreये दरख़्त , येे चौखट , ये गलियां, कुछ भी ना भूला ये परिंदा आवारा !! वक्त की धूल ने
Read Moreसफलता से पहले और असफलता के बाद एक सिरे पर खड़े हम करते हैं संघर्ष बड़े बड़े विमर्श करते हैं
Read Moreपढ़-पढ़ पोथी गुणीजन कहला रहें हैं विद्वान् । प्रेम को न समझ सके तो काहे कहला रहे हैं महान।। पढ़-पढ़
Read Moreसिर्फ़ हम ही नहीं आप भी और सभी चाहते कर्त्तव्य निभाना फिर भी हर कोई पूछे कर्त्तव्य की परिभाषा. किसी
Read More*ण ज्ञान हिम लौ घाट लगे संघ सौंदर्ज पुस्तक में लेख्य चै कल-आज मर्ज *ण = आभूषण *ग जाने
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