कविता

पढ़े-लिखे नादाँ…..

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहें हैं विद्वान् ।
प्रेम को न समझ सके तो
काहे कहला रहे हैं महान।।

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहे हैं विद्वान् ।
इंसानियत ही न समझ सके
फिर काहे के हैं वो इंसान।।

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहे हैं विद्वान् ।
ईश को भी बाँट दिया उन्होंने
दे रहे हैं पर धर्म का ज्ञान ।।

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहे हैं विद्वान् ।
महिला-दिवस पर देते भाषण
पर कर नहीं रहे हैं नारी सम्मान।।

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहे हैं विद्वान् ।
बुजुर्गों को भेज वृद्धाश्रम
दे रहे हैं पंडों को भोज-दान।।

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहे हैं विद्वान् ।
बेटी-पढ़ाओ, बेटी-बचाओ
बस दे रहे हैं नारो में ही मान।।

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहे हैं विद्वान् ।
सूरत-सीरत छोड़कर के
दहेज़ को बना रहे हैं आन-शान।।

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहे हैं विद्वान् ।
कहते हैं सोच जो बदलो
तो बदल जायेगा ये जहाँ ।।

पढ़-पढ़ पोथी गुणीजन
कहला रहे हैं विद्वान् ।
लेकिन बस कहलवा रहे हैं
बन तो रहें हैं ये निरे नादाँ।।

प्रवीन मलिक

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....