देखा
वे कहते हैं ज़ख्मों के बाज़ार में मुस्कुराहटों को रोते देखा, आसमां के गुलज़ार में सितारों को रोते देखा, जब
Read Moreइस दौर का हाल हमसे ना लिखवाओ, दुश्मन चारों तरफ हैं जरा संभल जाओ । उपयोग इंसा करने लगा है
Read Moreपर्यावरण के ये वन प्रहरी, सुंदर धरती है यह देन। हरा-भरा जीवन ये देते; दृश्य सुहाने देखते नैन।। वन हमारे
Read Moreबाबा का संबोधन मेरे लिए अब भी है उतना ही पवित्र और आकर्षक जितना था पहले अपने बेटे और भोलेनाथ
Read Moreउद्योगीकरण के आँधी में जब बुझने लगती पर्यावरण की बाती तब करने लगती धरती त्राही-त्राही और तब श्राप बनती संपदा
Read Moreहम फिर मिलेंगे कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में हम फिर मिलेंगे …. गर बनोगे तुम आकाश मैं
Read Moreमैं कवि नहीं हूँ और नाहीं कोई कविता करना जानता हूँ मैं दीपक हूँ इसीलिए सिर्फ जलना जानता हूँ |
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