कहानी : वास्तविकता का दर्पण
अनुज और रमेश एक ही गाँव में पैदा हुए। दोनों ही जाति के अलग परंतु दोनों के परिवारों के मध्य
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Read Moreशाम के साढ़े छ्ह बजने को सिर्फ दस मिनट बाकी थे,.. मैंने जल्दी से सामान का थैला स्कूटी में लटकाया
Read Moreगाँव के बेवा बुधिया की लाश बीच चौराहे पर पड़ी है, शायद कुछ लोग श्मशान ले जाने की तैयारी में
Read Moreअरे पल्लू तुम रो क्यूं रही हो,.. कोई हमेशा के लिये तुम मुझसे दूर थोड़े ही जा रही हो,… तुम
Read Moreखुदा से बड़ा रंगरेज कोई दूसरा नहीं है वो किसे क्या देता है, क्यों देता है, कब देता है, ये उसके
Read Moreइस वर्ष की होली का आनंद राजपुर गाँव में अनोखा ही था सभी लोग गाँव के प्रधान गुलाबसिंह की सूझ
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