छंद
मुश्किलों से खेलकर धूप छांव झेलकर ,हर एक पेट को ये अन्न उपजाते हैं । मिट्टी से यह सने हुए
Read Moreमाया ठगनी रूप को , मनुज जरा पहचान । हर लेती मति ये सदा, बात हमारी मान ।। बात हमारी
Read Moreटीके पर भी टुच्चई, करता टोंटीचोर टीपू तू इंजीनियर,या टट्टू, लतखोर या टट्टू ,लतखोर, करे अब टोका टोंकी इक तो
Read Moreअंतस में नैराश्य का, जब जब पले विकार निंदा रस की गोलियाँ, सहज सरल उपचार सहज सरल उपचार, जगाती उर्जा
Read Moreछाया हुआ अपनों में मिला ,भक्ति विभोर उत्सव छठी भुला दिखा हर मनवा खोज, ढूढे दिखा संचालिका सूरज दिखे चाहत
Read More-1- बचपन के दो नयन में,ले भविष्य आकार। वर्तमान देखें युवा, जरा अतीताभार।। जरा अतीताभार, देखता बीते कल को। चखता
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