“उल्लू जी का भूत”
दुनियाभर में बहुत हैं, ऐसे जहाँपनाह। उल्लू की होती जिन्हें, कदम-कदम पर चाह।। — उल्लू का होता जहाँ, शासन पर
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Read Moreअंतर्मन में घुल गया,विष बनकर आघात ! सुबहें गहरी हो गयीं,घायल है हर रात !! धुंआ हो गयी ज़िन्दगी,हुई ख़त्म
Read Moreजीवन मुरझाने लगा, ऐसी चली बयार ! स्वारथ मुस्काने लगा, हुआ मोथरा प्यार !! बिकता है अब प्यार नित, बनकर के सामान !
Read Moreदशरथ पिता नहीं रहे, कहां मिलेंगे राम। रिश्ते भी अब नेट पर, ढूढ़े मिले तमाम।1। पढना लाल भूल गये,
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