भजन/भावगीत

कवितापद्य साहित्यभजन/भावगीत

अनुष्टुप छंद “गुरु पंचश्लोकी”

अनुष्टुप छंद “गुरु पंचश्लोकी” सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे। वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।

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