अब थक गया हूँ मैं
चलते हैं हम हँसते-हँसते, भीतर टूटी है साँसे,चेहरों पर तो रोशनी है, मन में बुझती है आशाएँ।जीवन की डोर मे
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Read Moreये धुएँ की चादरें किसने ओढ़ लीं शहर ने?कहीं पेड़ थे, अब वहाँ सिर्फ़ इमारतें हैं। धरती पसीने से तर
Read Moreमैं वह परछाई हूँ, जो छिप न पाई,मन के आँगन में घर कर गई।जहाँ चालों की परतें बिछी थीं,वहाँ मेरा
Read Moreमेरी इच्छाओं का,मेरे नजरिए का,और मेरी बातों का कोई मान नहीं,तो कैसे मान लूं,कि उन बातों में छुपी हैमेरी रज़ा
Read Moreवे जब चलीं तो हाथ में कलम थी,पर राह में कांटे, पत्थर, हर कदम थी।सच की तलाश में निकलीं जो
Read Moreजब न्याय की नींव डगमगाए,जब सत्ता सच पर वार करे,तब कोई तलवार नहीं उठती —कलम उठती है, अंगार करे। ना
Read Moreछोटे-छोटे हाथों में, अब गेंद नहीं, किताब नहीं,चाकू है, गुस्सा है, आंखों में अब ख्वाब नहीं।न शरारत की हँसी बची,
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