कविता

कविता

शब्दों से पहले चुप्पियाँ थीं

शब्दों से पहले चुप्पियाँ थीं,सिलवटों में सिसकती बेटियाँ थीं।किताबों में दर्ज़ थीं उम्मीदें,मगर दीवारों में बंद इज़्ज़त की तिज़ोरियाँ थीं।

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कविता

कविता

आत्मा मर चुकीशरीर निष्प्राण होरीढ़ हड्डी विहीनकमर की तान हो,बिस्तरों पर लेटकरजो न्यायधीश बन सकेबेहया निर्लज्जों सेक्यों अपेक्षित सम्मान हो?क्यों

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