ग़ज़ल
धूल आदर्शों पर पड़ी चुपचापभीड़ आखिर में छँट गयी चुपचाप जाने किस मिट्टी की बनी थी वोसरनिगूँ ही खड़ी रही
Read Moreइस धरा पर जन्म का उपहार माँ से ही मिला,गर्भ में संस्कार का आचार माँ से ही मिला। माँ सदा
Read Moreसमय का साथ सच का हो तो सच उपहार देता हैअगर झूठों की हो संगत तो वो दुत्कार देता हैवो
Read Moreहम भीग रहे हैं बारिश की बौछारों में।लुत्फ़ बड़ा है इन सावन की बौछारों में ।भुल न पाऊं मैं उस
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