कलम का रणघोष
जब न्याय की नींव डगमगाए,जब सत्ता सच पर वार करे,तब कोई तलवार नहीं उठती —कलम उठती है, अंगार करे। ना
Read Moreजब न्याय की नींव डगमगाए,जब सत्ता सच पर वार करे,तब कोई तलवार नहीं उठती —कलम उठती है, अंगार करे। ना
Read Moreछोटे-छोटे हाथों में, अब गेंद नहीं, किताब नहीं,चाकू है, गुस्सा है, आंखों में अब ख्वाब नहीं।न शरारत की हँसी बची,
Read Moreकरवटों में बीती रातकुछ तो भय रहा होगाबिटिया चली पराई होकेकुछ तो मन डरा डरा होगा जिसकी हड़खेलियों सेघर आंगन
Read Moreआत्मनिर्भरता के क्षेत्र में उठा हैं एक बड़ा कदम,अभी स्वदेशी निर्मित बी.एफ.एस ने भरा हैं दम।उन पाँच महिला विज्ञानियों ने
Read Moreऊंची उड़ानो के इतिहास बाकीअधूरे वो सारे ख्वाब बाकी,पिता की खुशियों के एहसास बाकीउनके मोती के मूल्यों के हिसाब बाकी,मेरे
Read Moreपग-पग पर जंजीरें थीं, पर आँखों में अंगारे थे,अकेला था रणभूमि में, पर लाखों पर वो भारी थे।स्वाभिमान की चट्टानों
Read Moreसीख नहीं पाया अब तक मैंने शब्दों को जाल में फंसाकर बाजार की दुनिया में ले आना एक संवेदना है
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