बालकविता “आमों की बहार आई है”
बालकविता “आमों की बहार आई है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)—आम पेड़ पर लटक रहे हैं।पक जाने पर टपक रहे हैं।।—हरे वही
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Read Moreकरें योग हम आओ बच्चो। बनो निरोगी अच्छे बच्चो।। चुस्ती, फुर्ती होगी अंदर। आलस भागे तन के बाहर।। सूर्य नमस्कार
Read Moreखुल गया ,स्कूल घंटी बजी टन टन करलो तैयारी ड्रेस पहन के बन ठन। हाथ जोड़ कर करें राष्ट्र का
Read Moreछुटकू खरगोश छुटकू खरगोश कितना प्यारा, मृदुल रुई सा, सफेदी का चमकारा, बादल सा हल्का फुल्का, फुर्तीला, मेरा साथी, प्रिय
Read Moreगर्मी की छुट्टी है आई, नानी मां की याद सताई। घूमे-फिरे, मौज मनाई, जलेबी, लड्डू,बर्फी खाई।। गर्मी की छुट्टी ……
Read Moreफूल खिलेंगें क्यारी क्यारी, चारों दिशा में हो हरियाली । नदियाँ,लताएँ, झरने, घाटी, महक उठेगी धरती प्यारी । सुमन लदी
Read Moreकाली-काली घटा देखकर, उमड़-घुमड़ कर बदली आई। बिखर गई वह बारिश बनकर, धरती पर हरियाली छाई। मोर नाचते कोयल गाए,
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