व्यंग्य – कहीं… नाक, न कट जाए?
मानव शरीर में अत्यंत ‘अल्पसंख्यक’ होने के कारण नाक को आरक्षण की सुविधा मिली हुई है। वह कटती है और
Read Moreमानव शरीर में अत्यंत ‘अल्पसंख्यक’ होने के कारण नाक को आरक्षण की सुविधा मिली हुई है। वह कटती है और
Read Moreआशीर्वाद खूब फलता-फूलता है।बस यह इस बात पर निर्भर करता है कि देने वाला कौन है और ग्रहण करने वाला
Read Moreहर किसी को जीवन में स्वांग करना होता है.हमने भी जब शुरू-शुरू में लिखना प्रारम्भ किया तो कंधे पर झोला
Read Moreआखिर उनके स्वर फिर फूट पड़े,विपक्ष में रहकर ही स्वर फूटते हैं और सत्ता में रहकर सुर बनते हैं।एक सर्वे
Read Moreअपने देश के मौसम-तंत्र के क्या कहने ! अब बसंत को ही ले लीजिए ! मने इसी मौसम-तंत्र का हिस्सा
Read Moreपधारो वसंत! तुम हर साल की तरह इस बार भी बिन बुलाए आ गए? बड़े बेशरम हो भाई!! तुम ऋतुराज
Read Moreबसंत मतलब कवियों और साहित्यकारों के लिए थोक में रचनाएं लिखने का सीजन। बसंत मतलब तितलियों का फूलों पर मंडराने, भौंरे
Read Moreइधर सोशल मीडिया पर किसी पुस्तक मेले की खूब चर्चा चली ! मैं भी यहीं से पुस्तक-मेले में हो रही
Read Moreमैं एक असामाजिक-तत्व हूँ क्योंकि न शराब पीता हूँ और ना ही चाय। चार लोगों में बैठने लायक आदमी नहीं
Read Moreयदि आप सोचते हैं कि मैं भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानियों अथवा तालिबानी घुसपैठियों के सम्बन्ध में लिखने जा रहा हूँ
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