गाली : एक सांस्कृतिक संपत्ति ( व्यंग्य)
गालियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह ऐसी देव विद्या है जिसे जिज्ञासु, बिना किसी गुरुकुल, विद्यालय-विश्वविद्यालय में गए आत्म-प्रेरणा से
Read Moreगालियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह ऐसी देव विद्या है जिसे जिज्ञासु, बिना किसी गुरुकुल, विद्यालय-विश्वविद्यालय में गए आत्म-प्रेरणा से
Read Moreउस दिन लखनऊ में एलडीए के गोल मार्केट से पत्नी को खरीददारी कराकर वापस आ रहा था। मैंने लाल रंग
Read Moreहमारे समाज में चार की संख्या का विशेष महत्त्व है।चार धाम, चार वेद,चार वर्ण, लोकतंत्र के चार चरण (किन्तु गधा,घोड़ा
Read Moreरात के दस बजे थे। मैं रात्रि भ्रमण पर था। निश्चित था। कोई डर नहीं थी। क्योंकि क्षेत्र तो अपना
Read Moreजहाँ तक मेरी जानकारी की दूरदृष्टि जाती है,चोरी एक सदाबहार कला के रूप में विख्यात रही है। चोरियों के भी
Read Moreलंबे समय से कागज काला करता आ रहा हूं।लेकिन एक भी वैसा पुरस्कार,जिसमें सम्मानजनक राशि,प्रशस्ति पत्र व आकर्षक मोमेंटो शामिल
Read Moreआपके साथ हर समय रहने वाले ,सबकी अच्छी – बुरी सुनने वाले ;हम आपके ही दो कान हैं। आप ये
Read Moreदुकान और पकवान दोनों मानव से जुड़ी अति प्राचीन काल से सतत चलने वाली आवश्यकताएँ हैं। दुकान पर माँग –
Read More“सेर को सवा सेर” यह लोकोक्ति अब पुरानी हो गयी है। अब एक नयी कहावत बनी है- “ठग को महाठग”।
Read Moreजिस दिन पार्थ चटर्जी के घर से करोड़ों रुपए बरामद हुए उस दिन से मेरे घर में महाभारत छिड़ा हुआ
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