मनविश्राम छंद

कवितापद्य साहित्य

मनविश्राम छंद “माखन लीला”

माखन श्याम चुरा नित ही, कछु खावत कछु लिपटावै। ग्वाल सखा सह धूम करे, यमुना तट गउन चरावै।। फोड़त माखन

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