गीतिका
हम शर्मिंदा नहीं बेशर्म हैं, इसीलिए होते कुकर्म हैं। अपना इतिहास भूल गए, इसीलिए हो गए बेदम हैं। शस्त्र नहीं
Read Moreबचपने की ढल गयी है ,खूबसूरत शाम । करवटें बदली उमर ने ,तज सुखद आराम । खो गए वो दिन
Read Moreमनुष्य जनित पर्यावरण विनाश की वजह से पिछले पचास वर्षों में दुनियां भर में ऐसी 60 प्रतिशत वन्य जीवों की
Read Moreएक विषय बचपन: चार कवि 1.हां मैं बचपन हूं! मैं अल्हड़ हूँ, मैं कोमल हूँ, मैं, हूँ एक पुलकित पंग-पराग,
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