Author: *मदन मोहन सक्सेना

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : सब सिस्टम का रोना रोते

  सुबह हुयी और बोर हो गए जीवन में अब सार नहीं है रिश्तें अपना मूल्य खो रहे अपनों में

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल (अजब गजब सँसार )

रिश्तें नातें प्यार बफ़ा से सबको अब इन्कार हुआ बंगला ,गाड़ी ,बैंक तिजोरी इनसे सबको प्यार हुआ जिनकी ज़िम्मेदारी घर

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