आत्मकथा : मुर्गे की तीसरी टांग (कड़ी 26)
अध्याय-9: अरावली का उत्तरी छोर मैं अकेले ही चला था जानिबे मंजिल मगर। हम सफर मिलते गये और कारवाँ बनता
Read Moreअध्याय-9: अरावली का उत्तरी छोर मैं अकेले ही चला था जानिबे मंजिल मगर। हम सफर मिलते गये और कारवाँ बनता
Read More9. भविष्य का संकेत राजा की आज्ञा से महल में हलचल शुरू हो जाती है, सैनिक मुख्य प्रांगण में इकट्ठे हो
Read Moreमेरे अनेक अन्य पत्र मित्र भी रहे हैं। यदि उन सबका विस्तार से परिचय दूँ तो मेरी कलम को कभी
Read More8. स्वाधीनता की बलवेदी पर व्यग्र कर्ण देव टहलते हुए चिल्लाए, ”कोई है, कोई है?“ प्रहरी भाग के आया और अभिवादन
Read Moreशहनाज की तरह ही मेरी एक और पत्र मित्र थी- टीना। उसका असली नाम था ‘मैरीना कोलाको’। वह ईसाई थी
Read More7. आन्हिलवाड़ में नर संहार 1299 में बीस हजार घुड़सवारों सहित एक विशाल सेना लेकर नुसरत खाँ और उलूग खाँ राजधानी
Read Moreपत्र-मित्रता के माध्यम से मुझे कई घनिष्ट मित्र पाने का सौभाग्य मिला, जिनका जिक्र आगे करूँगा। मेरे व्यक्तित्व के निर्माण
Read More6. षड्यंत्र के सूत्रधार राजसी सवारियाँ मार्ग के किनारे निर्मित धर्मशाला के सामने रूकी। अग्रगामी घुड़सवारों ने राजसी स्त्रियों के आने
Read Moreआगरा में अपनी कक्षा के ज्यादातर लड़कों से भी मेरे सम्बन्ध नाम मात्र के थे। उनकी निगाह में मैं गाँव
Read More5. जंग की मंत्रणा एक ऊँचे तख्त पर सुल्तान अलाउद्दीन बैठा है। और उसके सामने कालीन पर उसके मुख्य दरबारी
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