लघुकथा

लघुकथा : भारतीय पुलिस

हमें भारतीय पुलिस पर गर्व तो होना ही चाहिए , हमारे सोते जागते यह हमारी रक्षा करती है . लेकिन ख़ास बात यह है कि  हमारी पुलिस दुनीआं में नंबर वन है , नंबर वन  ना भी हो लेकिन नंबर टू से कम भी हो नहीं सकती . आज जब भी हम किसी पुलिस मैंन को देखते हैं तो चेहरा खिल उठता है . किसी भी पुलिस मैंन  के पास जाएँ तो वो मुस्करा कर आप को पूछेगा , मैं आप की कैसे मदद कर सकता हूँ !  आप कोई भी काम हो बगैर घूस दिए करवा सकते हैं , बल्कि आप ने जैसे ही घूस देने की कोशिश की,  वोह उसी वक्त आप को घूस देने के दोष में गिरफ्तार कर लेगा . आप को मुसीबत पड़ जाए, घर में कोई चोरी हो जाए, आप फ़ौरन किसी भी पुलिस स्टेशन चले जाइए, उसी वक्त आप के साथ हो लेंगे . पुलिस स्टेशन में कोई औरत चली जाए , उस को इज्जत से बहन जी कह कर बुलाएंगे और उस की मुसीबत का हल ढून्ढ लेंगे . कार डराईवर ख़ास कर जो रात को शराब पी कर चलाते हैं उन को तो छोड़ते ही नहीं , किओंकि वोह घूस देने की कोशिश करते हैं .

लेकिन जब मैं ५६ वर्ष पहले की बात आप को बताऊँ तो आप हैरान हो जायेंगे कि उस वक्त पुलिस कैसी थी . हम गाँव के चार लड़के शहर में पड़ने के लिए रोजाना बाइसिकिलों  पर सवार हो कर जाया करते थे . हमारा मैट्रिक का एग्जाम नज़दीक आ रहा था . किओंकि उन दिनों गाँव से शहर जाने के लिए सड़क नहीं होती थी और बारिश की हालत में रास्ते मुश्किल हो जाते थे , इस लिए हम ने १४ रूपए महीने के किराए पर एक कमरा ले लिया . हम ने अपने कमरे में एक रेडिओ भी रख लिया था ताकि खाली समय में मस्ती भी कर सकें . सुबह हम स्कूल  चले जाते और स्कूल बंद होने पर अपने कमरे में वापिस आ जाते . फ्राइडे को हम गाँव चले जाते और सन्डे को वापिस आ जाते . आते वक्त हम अपने अपने घरों से परौठे मक्की की रोटीआं और साग ले आते . यह हमारा रोटीन था .

एक दिन जब हम स्कूल बंद होने पर वापिस अपने कमरे में आये तो कमरे में चोरी हो गई थी . रेडिओ , एक बाइसिकल , खाना बनाने वाला स्टोव , हमारे नए कपड़े, हमारे जूते और कुछ पैसे भी चोर ले गए थे . हम तो कमरे की हालत देख कर ही घबरा गए . एक पड़ोसी भी आ गिया और उस ने मशवरा दिया कि हम को पोलिस स्टेशन जा कर रिपोर्ट करनी चाहिए . जिंदगी में पहली दफा हम पोलिस स्टेशन गए और चोरी की रिपोर्ट दर्ज करवाई . पुलिस मैन  ने हमें भरोसा दिया कि जैसे ही चोर पकडे गए वोह हमें सूचना दे देंगे . दो महीने हो गए और हम इस घटना को भूल ही गए थे .

हमेशा की तरह हम चारों दोस्त फ्राइडे को गाँव चले गए और सन्डे को वापिस आ गए . आते वक्त हम बाज़ार के एक होटल से मीट ले आये . हम कमरे में आये और पड़ाई में मसरूफ हो गए . ९ वाज गए थे और हम चारों दोस्त रोटी खाने के  लिए बैठ गए . तभी दरवाजे पर दस्तक हुई . मैंने दरवाजा खोला और देखा बाहिर एक थानेदार , दो सिपाही और दो आदमी जिन के हाथों में हथकडियाँ थी . एक सिपाही बोला , आप ने चोरी की रिपोर्ट लिखवाई थी , हम ने चोर पकड़ लिए हैं और वोह दोनों यह हैं . मैंने ने उनको भीतर आने के लिए कहा और वोह सभी भीतर आ गए .

भीतर आ कर थानेदार ने उन चोरों को बहुत गंदी गालिआं दीं और गरज कर बोला ! बताओ हरामजादों , कैसे की चोरी . तो एक बोला , साहब ! हम देखते रहते हैं जब लड़के सकूल को जाते हैं . जब सब सकूल को चले जाते हैं तो हम ताला तोड़ लेते हैं . फिर थानेदार हम को बोला , कल को पोलिस स्टेशन आ कर अपनी चोरी का सामान ले आना और वोह सभी उठ कर जाने के लिए तैयार हो गए .

जब बाहिर गए तो हमारी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था . हम गाने लगे , तभी फिर दरवाजे पर दस्तक हुई . जब दरवाजा खोला तो एक सिपाही था और हम को कहने लगा , थानेदार साहिब सुबह के भूखे हैं , कुछ खाने को है ? हम ने कहा , हाँ है , आओ और खा लो .वोह सभी भीतर आ गए और हमारी गाँव से लाइ हुई मक्की की रोटीआं , साग और मीट सभी कुछ खा कर चले गए . हम को दुबारा होटल जा कर रोटी खानी पड़ी लेकिन हम खुश थे कि हमारी चोरी हुई हुई चीज़ें मिल गई थीं .

दुसरे दिन हम चारों पुलिस स्टेशन गए . पुलिस मैंन बोला ! साहिब तो आज है नहीं लेकिन तुम अपनी सभी चीज़ें चैक करके ले जाओ और उस ने एक पहले से लिखा हुआ एक पेपर हमें दे दिया जिस पर लिखा हुआ था , हमें सारी चीज़ें मिल गई हैं . उस के नीचे हम ने दस्तखत करने थे . जब हम सिपाही के साथ अन्दर गए तो उस ने कहा , अपनी चीज़ों की शानाखत करके उठा लो . जब हम ने देखा कि वहां तो  पाटे हुए कपड़े , पुराने जूते , रेडिओ दो तीन थे जिस में से सभी पुर्जे निकाले हुए थे , स्टोव भी कई थे लेकिन उस पर से बर्नर निकाले हुए थे . हमारी एक भी चीज़ नहीं थी .

हम ने एक दुसरे की तरफ देखा और उस  पेपर पर दस्तखत करके पुलिस स्टेशन से बाहिर आ गए . हम चुप चुप चल रहे थे . अचानक हमारा दोस्त अजीत जोर जोर से हंसने लगा . हम ने उसे पुछा कि वोह किओं हंस रहा है . तो वोह बोला , यार ! अगर हम यह चोरी की  रिपोर्ट नहीं करते तो कमजकम हमारा मीट और मक्की की रोटीआं तो बच जाते ! कहकहे लगाते हुए हम बाज़ार में से गुज़र रहे थे . लोग हमारी तरफ हैरान हुए देख रहे थे .

3 thoughts on “लघुकथा : भारतीय पुलिस

  • namita.rakesh@gmail.com

    भारतीय पुलिस का चित्रण और आप बीती काफी दिलचस्प है

  • Raj kumar Tiwari

    वैसे भारतीय पुलिय की जितनी बडाई की जाय कम है, ये तो बन्दर को खरगोस बना देतें है जुर्म कुबुल करवानें में । और आपके बचपन का दास्तां अच्छी उसमेें सबसे अच्छी बात यह है कि इस लघु कथा में आपने कई बाद मक्के की रोटी खाई है ….हम न खाएं तो कैसा लगेगा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा. यह भारतीय पुलिस का सही रूप है. चाहे दुनिया बदल जाए पर भारत की पुलिस नहीं बदलेगी.

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