कविता

कुछ कही कुछ अनकही-मैत्री के लिए !

बातें तो दोस्ती की बहोत करते हो लेकिन
बेवफा पैसों से दोस्ती के लिए जिंदगी भर मरते हो !
वफादार दोस्तों में भी पैसों के लिए दरार लाते हो !!
पैसा दोस्ती का सबसे बड़ा दुश्मन है दोस्तों
दोस्ती में नो थैंक्स नो सॉरी होता है !
फिर क्यूँ यही कहने पर मजबूर होते हो दोस्तों ?

यहाँ हर रिश्ता कर्ज होता है फिर भी ….
वो उतारा जा सकता है !
लेकिन दोस्ती का कर्ज कभी …
उतारा नहीं जा सकता दोस्तों
अगर दोस्ती की हो किसीसे तो
तुम भी जिंदगीभर कर्जदार रहते हो
फिर क्यूँ अपने आप को मालदार समझते हो दोस्तों ?

कहते हैं जंग और प्यार में
सबकुछ जायज है
लेकिन दुनिया के लिए
तो ये दोनों भी नाजायज है
सिर्फ दोस्ती ही ऐसी है
जिसमे सबकुछ जायज है
फिर क्यूँ नशे को गले लगाते हो दोस्तों ?

हमें दोस्तों को कभी
ढूंडने की जरुरत नहीं पड़ी
हमें दोस्ती में कभी
छांटने की जरुरत नहीं पड़ी
इश्वर की कृपा को भी तौला जा सकता है
लेकिन दोस्ती के लिए कोई तराजू नहीं है
फिर क्यूँ दोस्ती में भी वजन ढूंडते हो दोस्तों !

वसीयत चाहे कोई कितनी भी बना ले
कन्धा किसका होगा इसमे चॉइस नहीं होती
वाह वाह के लिए शायरी भी कभी
किसी ग़ालिब की मोहताज नहीं होती
पसंद आई हो ये पंक्तियाँ तो अभी
किसी दोस्त को गले लगा लो !
मुझे ढूंडने में वक्त क्यूँ बर्बाद करते हो दोस्तों !

– सचिन परदेशी ‘सचसाज’

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

4 thoughts on “कुछ कही कुछ अनकही-मैत्री के लिए !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    परदेशी जी , कविता बहुत अच्छी है , मेरा खियाल है कि यह कहने की जरुरत नहीं होती कि वोह मेरा सच्चा दोस्त है किओंकि अगर वोह ही दोस्त आप के काम ना आया तो आप कहेंगे उस ने दोस्ती का फ़र्ज़ नहीं निभाया . मेरे खियाल में दोस्त शब्द ही गलत है . यह तो एक ऐसा रिश्ता है अगर मरते दम तक सच्चे दिल से निभाए तो उसे जो मर्जी कह लें . मेरी जिंदगी में इतने दोस्त आये और चले गए . कुछ ऐसी शाख्सीअतें हैं जिन्होंने पिछले पचास वर्ष से ऐसा रिश्ता निभाया कि उन्हें दोस्त कहना उचित शब्द नहीं होगा .

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत खूब, भाई साहब. एक शेर कभी पढ़ा था-
      कासमी दोस्त न कहना मुझको.
      मैं ये रिश्ते बदल चुका हूँ.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता, परदेशी जी. आपने दोस्ती के रिश्ते को बहुत खूबसूरती से बयान किया है.

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