लघुकथा

चिट्ठी

एक चिट्ठी पिता की पुत्री को … तुम्हारे ससुराल वालों के कहे अनुसार सब मैंने किया …. फिर उनकी नाराजगी समझ में नही आती है.

उसका जबाब बहनोई उस साले को दिया जो समझ ही नही सकता था कि जीजा जी ने ये क्यूँ लिखा  कि सारा सामान लौटा दूंगा जो मेरे घर आया है तो दीदी भी सामान है …. साला तो तभी पढना सीख ही रहा था बात भी तो ३०-३२ साल पुरानी है.

चिट्ठियों के बंडल सहेज कर रखती वो। …. दिवाली के सफाई के साथ यादों के भी जाले साफ कर लेती है …..

उसे कभी डाकिया का इंतजार नही रहता था …. डाकिये के नाम से उसके रोंगटे खड़े हो जाते थे …

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “चिट्ठी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कहानी कुछ दाज दहेज़ से ताउल्क रखती है , किसी महला की सुसराल में मुसीबतों का ज़िकर है लेकिन पुरानी चिठ्ठी को याद करके किया कहना चाहती है, कुछ अस्पष्ट है.

  • विजय कुमार सिंघल

    कहानी को थोडा और स्पष्ट कीजिये.

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