कविता

वसंत पर क्षणिका एवम मुक्तक

भोर आलोक वसंत
नव जीवन स्पन्दन
मुक्त प्राण तमस
विहग राग अनुराग
हल्की मधुर बयार
अतीत में दबी स्मृतियाँ
आलिंगन साथ समृद्ध ।
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चली जब मदमाती मस्त पवन
चूमने को व्याकुल उन्मुक्त गगन
नाज़ नखरे संग इतराती वसुधा
निखरा लगा जो रूप हल्दी उबटन ।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

2 thoughts on “वसंत पर क्षणिका एवम मुक्तक

  • गुंजन अग्रवाल

    tahe dil se aabha Gurmel sir ji 🙂

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह वाह.

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