उपन्यास : देवल देवी (कड़ी १०)
8. स्वाधीनता की बलवेदी पर व्यग्र कर्ण देव टहलते हुए चिल्लाए, ”कोई है, कोई है?“ प्रहरी भाग के आया और अभिवादन
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Read Moreपता नहीं .. कहाँ से आ गए विरह के तम में मिलन की ज्योति के कुछ किरण जिसके कारण यह
Read More104 वर्षीय श्री ठाकुर सिंह नेगी देहरादून में आर्य समाज की एक सम्मानीय हस्ती है। जून 1910 में एक क्षत्रीय
Read Moreआज का दौर यही है नाम कुछ है और काम कुछ और है – मिस्टर दानी ने एक फूटी कौडी
Read Moreछोटू चाय की केतली और प्लास्टिक का गिलास लिए लाज की पहली मंजिल के कमरा नंबर 102 का दरवाज़ा खटखटाता
Read More(यह मार्मिक कविता कोख में एक लड़की का अंतिम बयान है.) मां ! तुम कितनी अच्छी हो, तुम दूरदृष्टा हो,
Read Moreक्या मै ठीक ठीक वहीँ हूँ जो मैं होना चाहता था या हो गया हूँ वही जो मै अब होना चाहता हूँ काई को हटाते
Read Moreसंसार में सुर तथा असुर अर्थात् देवता और राक्षस सदा से होते आये हैं। असुरों के प्रति सामान्य लोगों का
Read Moreदेश का तो पता नहीं पर सुना है हमारे शहर आगरा में ही कईngo हैं, फिर भी इतने गरीब सड़को
Read Moreजाड़े की धूप में बैठकर गप्पें हॉकी जा रही थीं। चाय व समोसे के सहारे वे बातें कर रहे थे।
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