साहित्य और समाज
“समाज नष्ट हो सकता है, राष्ट्र भी नष्ट हो सकता है, किन्तु साहित्य का नाश कभी नहीं हो सकता।“ ये
Read More“समाज नष्ट हो सकता है, राष्ट्र भी नष्ट हो सकता है, किन्तु साहित्य का नाश कभी नहीं हो सकता।“ ये
Read Moreआग सुलगती है नफ़रत की मन मेंआँखे फिर भी झरती हैं!!कब्र खुदी है इंसानियत की ,मानवता आहें भरती है!!अपने वक्त
Read Moreह्रदय के प्यार के सागर की आखरी सतह से सुनहरे अक्षरों के तिनकों को चुनकर मैंने बनाया है शब्दों
Read More23. धिक्कृत अभिलाषा मलिका-ए-हिंद (कमलावती) ने खुद को पूर्णरूप से सुल्तान के कदमों में निसार कर दिया। अलाउद्दीन ने उसे
Read Moreख़ुशबू से कह दो फैले यहाँ इख़्तिसार में, शहज़ादीमहव-ए-ख़्वाबहै टूटे मज़ार में। शबनम भी आंसुओ की तरह गुल पे
Read More(1) कहीं ले कर ना उड़ जाना मेरे होंसलों को तुम तुम वक़्त के परिन्दे हो कभी तुम ज़मीं पर
Read Moreहमें यह सूचना देते हुए अत्यन्य गर्व की अनुभूति हो रही है कि कर्नाटक के प्रसिध्द हिन्दी साहित्यकार एवं ‘जय
Read More“जाओ, जाओ, जाओ प्रभु को पहुँचाओ स्वदेश संदेश। गोली से मारे जाते हैं भारतवासी हे सर्वेश ॥“ ये पंक्तियाँ सन
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