कहानी

लम्बी कहानी : मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस (4)

||| रात 10:30 |||

ट्रेन रुकी हुई थी, शायद कोई क्रासिंग थी। बहुत देर से रुकी हुई थी !

कुछ देर से केबिन में ख़ामोशी थी।

फिर मायकल ने पुछा, “कुमार अगर तुम उस आदमी के दोस्त होते तो कैसे बदला लेते।“

मैंने कहा, “मैं उस आदमी के लिए जो कि मेरा दोस्त होता, जरुर बदला लेता ! मैं उस औरत को मार डालता।“

मायकल ने जोश में पुछा, “कैसे मार डालते। बताओ, मुझे भी बताओ !”

मैंने कहा – “अगर उसे घर में मारना होता तो मैं उसे ऐसे मारता जिससे कि वो आत्महत्या का केस लगे चाहे उसे ज़हर देता, या गैस से मारता या फिर फंदा लगाकर मार डालता या किसी और तरीके से, लेकिन वो लगता आत्महत्या का केस ही !”

मायकल ने गहरी सांस ली और कहा, “और अगर वो बाहर हो तो।“

मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, “बाहर में तो मैं उसे ऐसे मारता, जिससे वो एक एक्सीडेंट ही लगे। चाहे कार से या किसी और तरीके से, लेकिन वो एक एक्सीडेंट सीन ही होता। मैंने कई नावल पढ़े है कई फिल्मे देखी  है। ऐसा ही होता है।“

मायकल ने मुस्कराकर कहा, “यार तुम तो बड़े जीनियस हो। मैं तुम्हे एक शानदार चीज पिलाता हूँ।“ उसने बैग में से एक बोतल  निकाली। उसमे सफ़ेद सा पानी भरा हुआ था। मैंने उससे पुछा, “ये क्या है?’ उसने कहा, “ये गोवा की फेनी है। जिसे तुम कच्ची शराब भी कह सकते हो। इसका टेस्ट भी अलग है, लो इसे पीकर देखो।“ मैंने उसका एक घूँट लिया। बहुत ही कड़वा था, पर एक अजीब सी गंध थी मैंने दो घूँट और लिया। इसका भी एक अलग सा नशा था !

मैंने थोडा और पिया और काजू खाने लगा। रात गहरी हो रही थी।

मायकल ने पुछा, “कुमार तुमने कहा है कि अगर वो औरत बाहर रहे तो कार का एक्सीडेंट बता सकते हो। इसी तरह अगर वो औरत ट्रेन में रहे ; तो उसे कैसे मारते तुम।“

मुझ पर हल्का सा नशा तारी था। मैंने कहा, “यार, उसके खाने में ज़हर मिला देते या फिर ट्रेन से धक्का दे देते।“

मायकल ने कहा, “खाने में ज़हर मिलाना तो मुश्किल होता पर ट्रेन से धक्का, हां ये हो सकता है।”

मैंने कहा, “यार नशा ज्यादा हो गया है मैं बाथरूम जाकर आता हूँ !”

मैं बाथरूम में जाकर खूब सारे ठन्डे पानी से चेहरा धोया। सर गीला किया। और ट्रेन का दरवाज़ा खोलकर खड़ा हो गया। गाडी अभी भी खड़ी थी। ठंडी हवाओं के थपेड़े चेहरे पर लगने लगे। कुछ ही देर में अच्छा लगने लगा।

मैंने घडी देखी, रात के बारह बजने वाले थे। दूर से रोशनी दिख रही थी, शायद कोई स्टेशन आने वाला था। मैंने पूरे कोच में यूँ ही घूमना शुरू किया। अच्छा लग रहा था। गाड़ी की पहियों की भीषण खड़खड़ाहट का शोर नहीं था और पूरे कोच में शान्ति थी। दोनों कोच अटेंडट सोये हुए थे। हर केबिन का दरवाज़ा बंद था और बत्तियां बुझी हुई थी। मैं फिर गाड़ी के दरवाजे पर खड़ा हो गया।

“अच्छा लग रहा है न।” एक आवाज़ आई, बिना पीछे मुड़े मैं जान गया, वही महिला थी। मैंने कहा, “हाँ। मुझे ये सब बहुत अच्छा लगता है।“ उसने कहा, “मुझे भी।“ मैंने कहा, “आईये आप देखो ये, मैं तो बहुत देर से देख रहा हूँ।“ वो खड़ी हो गयी दरवाजे पर। मैंने कहा, “संभल कर। रात का समय है। नींद का झोंका आ सकता है। आप सो ही जाए तो अच्छा।“ उसने कहा, “नहीं। अभी एक बड़ी सी नदी आने वाली है। वो क्रॉस हो जाए फिर मैं सो जाती हूँ। मुझे रेलवे के ब्रिजेस को पार करना अच्छा लगता है , उसी के लिए जगी हुई हूँ।“  मैंने कहा, “और साहेब कहाँ है ?”  उसने कहा, “वो भी जगे हुए है। वो देखो। आ गए।“ आदमी ने मुझे फिर घूरकर देखा और कहा, “यार तुम हमेशा यही रहते हो क्या दरवाज़े पर?”  मैंने कुछ तल्खी से कहा, “नहीं यार मेरा अपना केबिन है। ये बस इतेफाक है कि जब मैं यहाँ खड़ा होता हूँ आप आ जाते हो। आईये, स्वागत है आपका। मैं चलता हूँ।“

मैं केबिन की ओर मुड़ा तो देखा मायकल खड़ा था, मैंने उससे कहा, “यार तुम सो जाओ, मुझे नींद नहीं आ रही है।“ मायकल ने भीतर आते हुए कहा  “मुझे भी नींद नहीं आती, बल्कि मैं तो कई रातो से नहीं सोया हुआ हूँ।“

मैंने सहानुभूति से कहा, “हाँ होता है दोस्त। मुझे भी कम ही नींद आती है।“ मैंने केबिन में प्रवेश किया और बत्तियां कम कर दी। ट्रेन अब भी रुकी हुई थी।

मायकल ने कहा, “थोड़ी और पिओंगे ?” मैंने कहा, “ नहीं यार अब नहीं। अब ठीक है।“

मैंने कुछ देर बाद पुछा, “मायकल तुम्हारी वाइफ मार्था ने आखिर तुम जैसे अच्छे आदमी को क्यों छोड़ दिया?”

मायकल बहुत देर तक खामोश रहा और फिर उसने कहा, “बात उन दिनों की है जब मैं स्ट्रगल कर रहा था। मार्था बहुत खुबसूरत थी। मैं उसे बहुत चाहता  था लेकिन उसे धन दौलत से ज्यादा प्रेम था, उसे दुनिया की बहुत सारी खुशियाँ चाहिए थी जो मैं नहीं दे सकता था।हम दोनों में अक्सर इस बात को लेकर झगडे हो जाते थे। मेरा ध्यान अपने छोटे से बिज़नस की तरफ ज्यादा था, मैं काम के सिलसिले में बाहर भी रहने लगा। मुझे धीरे धीरे इस बात का अहसास हो रहा था कि उसकी रूचि मुझमें कम होती जा रही थी। हम गोवा में रहते थे और मापुसा बीच के पास मेरा घर था, जो कि गिरवी पड़ा हुआ था। आखिर मैं क़र्ज़ न चूका सका और वो घर भी बिक गया, हम लोग वही पर एक छोटे से किराए के घर में रहने लगे। मैं कुछ दिनों के लिए केरला गया, वही से वापस आने पर मैंने मार्था के रंग ढंग में परिवर्तन देखा। मैंने ये भी जाना कि हमारे ही घर के पड़ोस के होटल में एक बड़ा बिजनेसमैन रहने आया हुआ है। वो गोवा में होटल खोलने का इच्छुक था और कुछ दिनों के लिए मार्किट की स्टडी के लिए उसी होटल में रुका था। उसका नाम राणा था और वो कोलकता से था, जब मैं वापस पहुंचा तो मार्था ने मुझे उससे मिलवाया और कहा कि ये तुम्हारे बिज़नस में मदद कर देंगे। खैर कुमार साहेब मुझे राणा से मदद तो मिली लेकिन एक कीमत पर, उसने मेरी बीबी को अपने पैसो और प्रेम के जाल में फंसा लिया। मेरे पीठ पीछे मेरी बीबी मुझे धोखा दे रही थी। उसको राणा से प्यार हो गया था या फिर यूँ कहिये कि राणा के पैसो से प्रेम हो गया था। खैर मुझे भी कुछ समय में भनक तो लग गयी थी। मेरा राणा से बहुत बड़ा झगडा भी हुआ, लेकिन उस बात का उसपर कोई असर नहीं हुआ और वो बाज न आया। उसने वो होटल खरीद लिया था जिसमे वो  रह रहा था और मेरी बीबी उसी होटल की मेनेजर भी बन गयी थी। मार्था ने मुझसे तलाक माँगा, लेकिन मैंने इनकार कर दिया। मैं भला आदमी था, लेकिन दुनिया में सब भले नहीं होते। उसने और राणा ने मिलकर साजिश रची और मुझे अपने रास्ते से हटा दिया !”

मुझे मायकल की कहानी से दुःख हो रहा था। मैंने फिर भी पुछा, “क्या किया उन्होंने?”

मायकल ने कुछ नहीं कहा, एक गहरी सांस ली और रोने लगा। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने उठाकर उसके कंधे थपथपाये, उसे चुप कराया. मैंने कहा, “चलो छोडो ये सब. दारु निकालो, थोडा पीते है।“

हम दोनों पीने लगे। ट्रेन अभी भी रुकी हुई थी। मैं सोच रहा था कि दुनिया में क्या पैसा ही सबकुछ होता है। इंसानियत नाम की कुछ बात होती है या नहीं !

मायकल अब चुप हो गया था।

थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा, “यदि तुम मेरे दोस्त होते तो क्या उससे बदला लेते ?” मैं कहा, “बिलकुल लेता। मैं तो मार डालता।“ मुझ पर नशा चढ़ गया था। मायकल ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “थैंक्स यार!”

ट्रेन चलने लगी। और मेरी आँखे नशे में मुंदने लगी। मैंने घडी देखी, रात के एक बज रहे थे, पता नहीं कितनी देर से गाडी खड़ी थी। मैंने उसे कहा, “यार मैं थोड़ी हवा लेकर आता हूँ। अच्छा नहीं लग रहा है।“

उसने कहा, “मैं भी आता हूँ।“

मैंने देखा ट्रेन के दरवाजे पर वो औरत खड़ी हुई थी, उसके खुले बाल बाहर की हवा में लहरा रहे थे। मैं चुपचाप उसे देखते हुए उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। मैंने मुड़कर देखा, मायकल ठीक मेरे पीछे ही खड़ा था। मैंने मायकल को देखकर उस औरत की तरफ देखकर आँख मारी। मायकल के चेहरे पर कोई भाव नहीं था !

मैं चुपचाप उस औरत के बालो को अपने चेहरे पर आते हुए और जाते हुए देखता रहा। मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने धीरे से कहा, “आप तो बहुत खुबसूरत हो।“ वो चौंक कर मुड़ी और लडखडा गयी मैंने उसे थामा। उसने मुझे बहुत देर तक देखा और मुस्करा दी।

ट्रेन धीमी हो रही थी। मैंने स्टेशन का नाम पढ़ा – दुर्ग जंक्शन। स्टेशन पर चहलकदमी थी। भारत में न स्टेशन सोते है। और न ही ट्रेन की पटरियां। ज़िन्दगी बस चलती ही रहती है। कुछ मिनट रूककर ट्रेन चल पड़ी। धीरे धीरे ट्रेन ने स्पीड पकड़ी।

दौड़ती हुई ट्रेन। पीछे छूटता हुआ शहर और शहर की जलती- बुझती बत्तियां, मुझे कविता लिखने का मन हुआ। जीवन भी अजीब ही है। क्षणभंगुर सा !

ट्रेन की गति बढ़ रही थी।

वो मुड़ी, मैंने देखा वो बहुत खुबसूरत थी, वो मुझे देखकर मुस्करायी। मैं भी मुस्कराया। मैंने कहा, “अब रात हो गयी है, जाकर सो जाईये।“ उसने कहा, “बस थोड़ी देर, एक ब्रिज आने वाला है। वो देख कर चली जाती हूँ।“ मैंने कहा, “हां शायद शिवनाथ ब्रिज है।“ ट्रेन की गति बढ़ गयी थी। वो मुझे देख कर मुस्करा रही थी। मैं उसके करीब हो गया था। ब्रिज आ रहा था। ट्रेन की पटरियों के तेज शोर के बीच में मैंने उससे पुछा –“तुम्हारा नाम क्या है?”

ब्रिज में गाडी दाखिल हुई। शोर बढ़ गया था। उसने मुझसे कुछ कहा मुझे सुनाई नहीं दिया। मैं अपने  कान उसके मुंह के पास लेकर गया। मैंने जानकार थोडा उसके करीब भी हो गया।

उसने कहा, “मेरा नाम मार्था है!”

मुझे एक झटका सा लगा, मैंने उसे पकड़ सा लिया और मुड़कर देखा। मायकल मेरे पीछे ही खड़ा था, उसने मुझसे कहा, “इसे धक्का देकर मार दो, यही वो धोखेबाज औरत है। तुम मेरे दोस्त हो। तुमने मुझसे कहा था कि तुम इस मारोंगे !”

ट्रेन का शोर, पटरियों का शोर, ब्रिज का शोर। मार्था ने अपने हाथ छोड़कर मेरे गले में डाल दिए थे। पीछे से मायकल ने कहा – “मारो धक्का !” और उसने मुझे धक्का दिया, हडबडाहट में मैंने मार्था को धक्का दे दिया, वो जोर से चीखती हुई ब्रिज और पटरियों के बीच में गिरी, पता नहीं वो कितने टुकडो में कट गयी और नदी में गिरी या पटरियों पर ही पड़ी रही। ट्रेन की भयानक आवाज़ में उसकी पतली आवाज़ किसी को नहीं सुनाई दी.

मैं काँप रहा था, मायकल मुझे अपने केबिन में लेकर आया  और अन्दर से दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं रोने लगा, मेरा नशा हिरन हो गया था, ये मैंने क्या कर दिया था –एक मर्डर। मैं एक पढ़ा-लिखा नौकरीपेशा आदमी, ये मैंने क्या कर दिया।

मायकल ने मुझे अपने गले से लगाने की कोशिश की। मैंने उसे हटा दिया। मैंने चिल्लाते हुए कहा, “तुम सब जानते थे। तुम शुरू से जानते थे की वो मार्था है, तुम्हे उसे मारना था। तो तुम मारते, मुझसे क्यों करवाया?”

मायकल ने मुझे शराब दी और पीने को कहा, पता नहीं उसके बात में क्या था कि मैंने फिर पीना शुरू किया। मायकल ने कहा, “शांत हो जाओ दोस्त, तुमने एक बुरे इंसान को मारा है और ये पाप नहीं है !”

मैं चुप हो गया। इतने में केबिन का दरवाज़ा किसी ने खटखटाया, मैंने उठकर दरवाजा खोला, दरवाजे पर वही मोटा आदमी था, जो उस औरत के साथ था। उसने मुझे देखा और कहा “यार मार्था नहीं दिखाई दे रही है। ज़रा उसे तलाश करने में मेरी मदद करो।“ मैं क्या कहता, मैंने कहा “आप जाकर बैठो मैं आपके केबिन में आता हूँ।“ उसके जाने के बाद मैंने मायकल से कहा, “अब मैं इसे क्या जवाब दूं  और क्या ये आदमी राणा है !” मायकल ने हां में जवाब दिया। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैंने मायकल से कहा, “मैं ये किस झमेले में फंस गया यार!” मायकल ने कहा, “जाकर उसे बता दो। सब ठीक हो जायेंगा।“

(जारी…)

One thought on “लम्बी कहानी : मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस (4)

  • विजय कुमार सिंघल

    पढ़कर दिल धक् से रह गया ! कोई व्यक्ति किसी दुसरे का इस तरह भी इस्तेमाल कर सकता है, यह अकल्पनीय है. लेकिन सब कुछ संभव है !
    बढ़िया कहानी !

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