सामाजिक

विकराल होती दहेज़ की समस्या

विचारधाराएँ बदल रही है लोगों की. माना, दे रहे हैं लोग बेटियों को भी बेटों के बराबरी का दर्जा. उच्च से उच्चतम शिक्षा देने के लिए अपनी औकात से भी अधिक खर्च कर रहे हैं बेटियों के भी माता पिता!

किन्तु समाज की यह बिडम्बना है कि आज भी बेटियों के माता पिता को अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा देने के बावजूद भी उनके विवाह के लिए दर दर भटकना पड़ रहा है. दहेज लोभियों की माँग इतनी बढ गई है कि बेटियों के लिए दूल्हे दिन पर दिन महंगे होते जा रहे हैं. बहुत मुश्किलें उठानी पड़ती हैं, दूल्हे की खरीदारी में बहुत मोलभाव करना पड़ता हैं. पूछो बेटी वालों से, यदि बाज़ार भाव के हिसाब में वो फिट नहीं बैठते तब कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है उन्हें. शुरू हो जाती है उन्हें मन ही मन बेटी के माता पिता होने की टीस. और हो भी क्यों नहीं? जिन्होंने अपनी जीवन भर की पूंजी लगा दी हो अपने बच्चों की शिक्षा दीक्षा में. नहीं फर्क किया कभी बेटे और बेटियों में. नाज करते रहे अपनी बेटियों पर कि मेरी बेटी नहीं बेटा है.

परन्तु जब वे पुत्रियों के विवाह के लिए दर दर भटकते हैं और सिर्फ दहेज ही योग्य वर के तलाश के राह में बाधक बनने लग जाता है तब निराशा उन्हें घेर लेती है और निश्चित ही उनकी अन्तरात्मा के किसी कोने से आवाज निकल ही आती है- काश आज बेटी की जगह बेटा होता, बेकार इतना पढाया लिखाया बेटी को, जब पढाने लिखाने के बावजूद भी दहेज ही जुटाना पड़ रहा है. अफसोस करने लगते हैं कि बल्कि उसी पैसे को जमा ही किया होता, तो जितना दहेज माँगने वालों के मुह पर फेंक देता आदि आदि!

ताज्जुब की बात यह है कि दहेज की समस्या दिन पर दिन बढती ही जी रही है प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में! कुछ लोग तो यह कह देते हैं कि हमें कुछ भी नहीं चाहिए जो देना है अपनी बेटी को दे दीजिए. आखिर किस चीज की कमी है हमारे पास? और उसके बाद बना देते हैं जेवर कपड़ा और कीमती सामानों की लम्बी चौड़ी लिस्ट. बारातियों का स्वागत सत्कार भी. जितने बड़े लोग उतनी बड़ी हैसियत और उतना ही बड़ा इन्तजाम. और कहते हैं मैंने तो दहेज लिया ही नहीं!

दहेज दायज शब्द से बना है जिसका अर्थ है दान. चूँकि समाज की यह व्यवस्था बनी हुई है कि बेटियों को अपना घर छोड़कर ससुराल जाना होता है जिसमें पिता अपनी पुत्रियों को उपहारस्वरूप धन देता है, जो स्त्री धन कहलाता है, जिसपर सिर्फ उनकी पुत्री का अधिकार होता है. यहाँ लडके के माता पिता को तो माँगने का अधिकार ही नहीं बनता क्योंकि दान स्वेच्छा से दी जाती है. और जो माँगा जाता है वह भिक्षा कहलाता है! परन्तु इन भिक्षुकों की बात ही न्यारी है भिक्षा भी माँगते हैं और रूआब भी दिखाते हैं. क्यों कि बेटे के माता पिता हैं.

माना कि बेटों की शादी में अधिक खर्च होता है पर क्यों नहीं वो अपनी औकात के अनुरूप ही खर्च करते हैं? जब बेटों की छट्ठी, जन्मदिन, शिक्षा-दीक्षा का खर्च वह स्वयं उठाते हैं फिर बेटों के विवाह का खर्च क्यों नहीं? क्यों नहीं लड़की वालों के समस्याओं को समझ पाते? क्या आवश्यकता है झूठे दिखावे करने की?

दहेज एक बहुत बड़ी समस्या है समाज की इसपर अंकुश लगाना ही होगा. नहीं तो बेटियों की संख्या दिन पर दिन और घटती जाएगी. जिसका दुष्परिणाम हम सभी को भुगतना पडेगा! इस समस्या के उन्मूलन के लिए लड़की वालों को भी दूल्हे की हो रही नीलामी पर बोली नहीं लगाना चाहिए! उन्हें भी अपनी बेटी के साथ साथ दूसरे की बेटियों के हितों का खयाल रखना चाहिए और अपनी हैसियत के अनुसार ही घर-वर का चुनाव करना चाहिए. याद रखना चाहिए कि सुख सिर्फ समॄद्धि में नहीं है!

*किरण सिंह

परिचय नाम - किरण सिंह जन्मस्थान - ग्राम - मझौआं , जिला- बलिया उत्तर प्रदेश जन्मतिथि 28- 12 - 1967 शिक्षा - स्नातक - गुलाब देवी महिला महाविद्यालय, बलिया (उत्तर प्रदेश) संगीत प्रभाकर ( सितार ) प्रकाशित पुस्तकें - 16 काव्य कृतियां - मुखरित संवेदनाएँ (काव्य संग्रह) , प्रीत की पाती (छन्द संग्रह) , अन्तः के स्वर (दोहा संग्रह) , अन्तर्ध्वनि (कुण्डलिया संग्रह) , जीवन की लय (गीत - नवगीत संग्रह) , हाँ इश्क है (ग़ज़ल संग्रह) , शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) , बिहार छन्द काव्य रागिनी ( दोहा और चौपाई छंद में बिहार की गौरवगाथा ) । बाल साहित्य - श्रीराम कथामृतम् (खण्ड काव्य) , गोलू-मोलू (काव्य संग्रह) , अक्कड़ बक्कड़ बाॅम्बे बो (बाल गीत संग्रह) , कहानी संग्रह - प्रेम और इज्जत, रहस्य , पूर्वा लघुकथा संग्रह - बातों-बातों में सम्पादन - दूसरी पारी (आत्मकथ्यात्मक संस्मरण संग्रह) , शीघ्र प्रकाश्य - फेयरवेल ( उपन्यास) सम्मान सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान ( उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ 2019 ), सूर पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2020) , नागरी बाल साहित्य सम्मान (20 20) बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य सेवी सम्मान ( 2019) तथा साहित्य चूड़ामणि सम्मान (2021) , वुमेन अचीवमेंट अवार्ड ( साहित्य क्षेत्र में दैनिक जागरण पटना द्वारा 2022) मूल निवास / स्थाई पता - किरण सिंह C /O भोला नाथ सिंह ग्राम +पोस्ट - अखार थाना - दुबहर जिला - बलिया उत्तर प्रदेश पिन कोड -277001 वर्तमान /स्थाई पता 301 क्षत्रिय रेसिडेंशी रोड नंबर 6 ए विजय नगर रुकुनपुरा पटना बिहार 800014 सम्पर्क - 9430890704 ईमेल आईडी - kiransinghrina@gmail.com

2 thoughts on “विकराल होती दहेज़ की समस्या

  • बैहन जी लेख पड़ कर मन को दुःख हुआ कि हम कहाँ खड़े हैं . यह दान दहेज़ का कोहड कब ख़तम होगा भारत में से . जब भी कोई ऐसा लेख होता है तो मैं अपना बीता कल रीपीट कर देता हूँ जिस को लिख कर मुझे कोई बोरीअत या शर्म मेहसूस नहीं होती . १९६७ में मैं अपनी शादी बगैर दहेज़ और दस बराती ले जा कर करवाई थी जिस की सभी ने श्लाघा की थी .हम ने अपना विवाहता जीवन बहुत ही सुख से बिताया है और बच्चे और आगे ग्रैंड चिल्ड्रन भी सभय हैं , हमें कभी कोई तकलीफ नहीं दी . हम ने अपने बच्चों की शादीइओन पे भी इतना खर्च नहीं किया था .इसी लिए मैं सुख में हूँ . क्या कोई ऐसा महात्मा भारत में आएगा जो यह कोहड ठीक कर सके ?

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने इस समस्या को सही रूप में समझा है. जब तक हम यह ध्यान में नहीं रखेंगे कि हम भी बेटी वाले हैं, तब तक यह समस्या हम नहीं होगी. केवल कानून इसमें कुछ नहीं कर सकता. अच्छे लेख के लिए साधुवाद !

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