कविता

माँ / तलाश

माँ को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा;
वो हमेशा ही मेरे पास थी और है अब भी .. !

लेकिन अपने गाँव/छोटे शहर की गलियों में ,
मैं अक्सर छुप जाया करता था ;
और माँ ही हमेशा मुझे ढूंढती थी ..!
और मैं छुपता भी इसलिए था कि वो मुझे ढूंढें !!

….और फिर मैं माँ से चिपक जाता था ..!!!

अहिस्ता अहिस्ता इस तलाश की सच्ची आँख-मिचोली ,
किसी और झूठी तलाश में भटक गयी ,
मैं माँ की गोद से दूर होते गया …!

और फिर एक दिन माँ का हाथ छोड़कर ;
मैं ;
इस शहर की भटकन भरी गलियों में खो गया … !!

मुझे माँ के हाथ हमेशा ही याद आते रहे …..!!

वो माँ के थके हुए हाथ ,
मेरे लिए रोटी बनाते हाथ ,
मुझे रातो को थपकी देकर सुलाते हाथ ,
मेरे आंसू पोछ्ते हुए हाथ ,
मेरा सामान बांधते हुए हाथ ,
मेरी जेब में कुछ रुपये रखते हुए हाथ ,
मुझे संभालते हुए हाथ ,
मुझे बस पर चढाते हुए हाथ ,
मुझे ख़त लिखते हुए हाथ ,
बुढापे की लाठी को कांपते हुए थामते हुए हाथ ,
मेरा इन्तजार करते करते सूख चुकी आँखों पर रखे हुए हाथ …!

फिर एक दिन हमेशा के हवा में खो जाते हुए हाथ !!!

आज सिर्फ माँ की याद रह गयी है , उसके हाथ नहीं !!!!!!!!!!!

न जाने ;
मैं किसकी तलाश में इस शहर आया था …

— विजय कुमार सप्पत्ति 

2 thoughts on “माँ / तलाश

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर ! माँ तो माँ ही होती है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता .

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