गीत/नवगीत

गीत : कौन सुनेगा सरगम का सुर

मीठे सुर में गाकर कोयल, क्यों तुम समय गँवाती हो?
कौन सुनेगा सरगम का सुर, किसको गीत सुनाती हो?

बाज और बगुलों ने सारे, घेर लिए हैं बाग अभी,
खारे सागर के पानी में, नहीं गलेगी दाल कभी,
पेड़ों की झुरमुट में बैठी, किसकी आस लगाती हो?
कौन सुनेगा सरगम का सुर, किसको गीत सुनाती हो?

चील जहाँ पर आस-पास ही, पूरे दिन मंडराती हैं,
नोच-नोच कर मरे मांस को, दिनभर खाती जाती हैं,
जो स्वछन्द हो चुके, उन्हें क्यों लोकतन्त्र सिखलाती हो?
कौन सुनेगा सरगम का सुर, किसको गीत सुनाती हो?

जो जग को भा जाये, वही भाषा सच्ची कहलाती है,
सीधी-सच्ची भाषा ही तो, सबका मन बहलाती है,
अपनी मीठी वाणी से तुम, सबका दिल बहलाती हो।
कौन सुनेगा सरगम का सुर, किसको गीत सुनाती हो?

तन हो भले तुम्हारा काला, सुर तो बहुत सुरीला है,
देखा जिनका “रूप” सलोना, उनका मन जहरीला है,
गूँगे-बहरो की महफिल में, क्यों इतना चिल्लाती हो?
कौन सुनेगा सरगम का सुर, किसको गीत सुनाती हो?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है

2 thoughts on “गीत : कौन सुनेगा सरगम का सुर

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    बहुत ही यथार्त कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा गीत !

Comments are closed.