कविता

कविता

जैसे हुई नही
उस रात के बाद
सुबह
झरता रहा
अँधेरा
अंदर बाहर
उसने कहा
चित्त लेटो
हो जाएगा सब शांत
पर रात की
रीतती रुलाई
घूमती रही
लगातार
गोल गोल
जाने कौन से
चक्रव्यूह
बनाती भेदती
कुछ खो गया था
ना मिलती थी
चाभी उस संदूक की
हरबार महसूस करती
ठंडा स्पर्श
हथेलियों में
पर आँख खोलते गायब
खो गया ,
क्या अब
कभी नहीं मिलेगा ?
एक हूक उठती
कोई पतली लकीर नहीं
रेशे में खरोंचा
निशान नहीं
बस विध्वंस
सब चुक जाने का
प्रलयंकारी विलाप ।

….रितु शर्मा

रितु शर्मा

नाम _रितु शर्मा सम्प्रति _शिक्षिका पता _हरिद्वार मन के भावो को उकेरना अच्छा लगता हैं

3 thoughts on “कविता

  • गुंजन अग्रवाल

    sundar

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत बढिया .

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

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