कहानी

हिमाचली कहानी : पापड़ा

परिवार के सभी सदस्यों के गले में गाय को बांधने वाली रस्सियां डाल दी गई हैं। परिवार की ब्याही बिन ब्याही बेटियां घर के सभी छोटे बड़े बच्चों, बूढ़ों को भी बांध दिया गया है। तीन दिन हो गए , सभी रिश्तेदार मित्र, बंधू बांधव गांव गली की सभी महिलाएं, पुरूष सभी हाथ जोड़े बैठे हैं। नींद से आंखें सूज गई हैं। होठ सूख गए। गाजे बाजे , ढोल नगाड़े ,दमयानु और छनके से कान बहरे हो गए हैं। ’’ढण-मण ढण-मण ढणण ढणण छण-छण, तिकड़- तिकड़, तिकड-तिकड़ ’’ बजंत्रियों के हाथों में छाले पड़ गए हैं। अर्ज करते तांत्रिक के मुंह का थूक सूख गया, गला बैठ गया है। बोलता है तो मानोे फटा हुआ स्पीकर बज रहा हो, लेकिन डोली ( वह व्यक्ति जिसमें आत्मा अवतार रूप में आएगी) है कि अवतार लेने को तैयार ही नहीं !
परिवार का मुखिया नंदू तीन दिन से भूखा-प्यासा बैठा, अब थर-थर कांपने लगा है। जैसे कैेसे उठा और डोली के पाँव से लिपट कर रो पड़ा… हाथ जोड़ कर क्षमा याचना करने लगा। ’’ अवतार रूप में आओ पाप्पा … हम सब तेरे गुनहगार हैं….।’’ ’’अवतार रूप में आओ ! हमें माफ करो आवतार रूप में आओ… हम सब पापी हैं , मैं भी पापी हँू …मेरा पूरा परिवार पापी है …हम सजा पाने के किए तैयार हैं! आओ पाप्पा आओ!’’ रिश्तेदारों ने भी नंदू की अर्ज में सुर मिलाया …। इसके साथ ही एक शमशान घाट सी शान्ति चारों ओर फैल गई। नगाड़े, दमयानु और छनका कुछ देर की शान्ति के बाद फिर से भन्नाने लगे। अचानक डोली जोर से चीखा… ’’इ ..! नाश कर दूंगी नाश! सब का नाश कर दूंगी ! बीज उगाल दूंगी ! इसी ने मारा था मुझे, ये मेरा खसम … यही है मेरा कातिल ! तुझे तो मैं छोड़ूंगी ही नहीं ! ये कहते हुए डोली ने जब चीखें मारी तो पांव के नीचे से मिट्टी खिसकने लगी ! सिर पर ज्यों किसी ने पाणी के घड़े उड़ेल दिए हों।
उपस्थित सभी लोग हाथ जोड़े खड़े हो गए। ’’खुल के आ पाप्पा खुल के आ… तू सच्ची हम सब झूठे! खुल के बोल , परिवार में बहुत कष्ट हैं तुम्हें याद किया है! और इन कष्टों से तुम ही छुटकारा दिला सकती हो! ए देवी आत्मा खुल कर आओ और अपने दिल की बात कहो, आज तुम्हें किसी का कोई भय नहीं है, तुम्हारे नाम का डंका लगाया है ! आओ ’’ तांत्रिक ने अर्ज किया। हु हु हु …. हां मुझे किसी का कोई डर नहीं ! मैं आज सब साफ साफ कहूंगी। मुझे जहर देकर मारा गया और मुझे मारने वाला और कोई नहीं! ये मेरा खसम लालू है। इसी ने मारा है मुझे ! डोली बोला तो भीड़ में खुसर फुसर शुरू हो गई। डोली ने सीमा के अवतार में लालू की ओर उंगली करते हुए चेतावनी दी कि तेरे पूरे परिवार को कोढ़ लगाउंगी मैं! तेरी सात पीढ़ियां कोढ़ी पैदा होंगी ये मेरा शाप हैं।
पिछले एक वर्ष से बिस्तर पर पड़ा लालू , परिवार के दो जनों का सहारा लेकर उठ बैठा और थरथराते हुए हाथ जोड़ कर क्षमा याचना करने लगा। ’’ मुझे माफ करना सीमा मैं अपना गुनाह कबूल करता हूँ , मैं ही तेरा कातिल हूँ .. मुझ पर दूसरे विवाह का भूत स्वार था और मैं पागल हो गया था भले बूरे का अन्तर ही भूल गया था मैं! कहते हुए लालू सीमा के आगे गिड़गिड़ाया। लालू को दूर दूर तक और अच्छे से अच्छे होस्पिटलों में दिखा दिया था लेकिन सभी ने हाथ खड़े कर दिए थे। किसी डाॅक्टर को लालू की बीमारी का कोई पता नहीं चला ।
सीमा का क्रोध सातवें आमान पर था , उसने चीखते हुए न में उंगली हिलाई और कहा तुझे माफी ! तुझे तो तड़पा तड़पा कर मारना है, तुझे नहीं छोड़ंूगी मैं ! अभी तो शुरूआत है ! डोली के शरीर में आई सीमा की आत्मा प्यास से भड़क उठी थी ! पानी का इशारा किया तो लालू की माता दया उठी और पानी का लोटा गिलास लेकर डरते डरते सीमा के पास जाने लगी ही थी … कि जोर की चीख से ठिठक गई। सीमा ने उसके हाथ का पानी पीने से साफ इन्कार कर दिया, कहने लगी तू तो इधर ही मत आना मेरी सास! तू भी तो शामिल थी न! मेरी मौत के शड़यन्त्र में … तूने ही तो खीर पटांडे (पहाड़ी डिश) बनाए थे! सुना था स्त्री ही स्त्री की सबसे बड़ी शत्रु होती है , तुमने ये साबित करके दिखा दिया। तूने तो मुझे मरती बार भी पानी नहीं पिलाया …अब तेरे हाथ का पानी ! थू …!’’ सीमा ने भरी सभा में उसकी पोल खोल कर रखी तो दया यूं गायब हुई ज्यों गधे के सर से सींग ! भीड़, डोली के मुंह से आत्मा की एक एक बात सुन कर हैरान हो रही थी कि कैसे ये सब बातें जो परिवार के सिवा दिवारों को भी मालूम नहीं गिन गिन कर बता रहा है ।
मेरी रेणु को बुलाआ ….उससे कहो कि मुझे पानी पिलाए …मैं अपनी बेटी के हाथ का पानी पीना चाहती हूँ। ’’उं हूं उुं … ’’डोली ने गहरी सांस ली। कुछ लोगों ने नन्हीं रेणु के गले से रस्सी खोली उसे सहारा देकर खड़ा किया और उसे पानी का लोटा, गिलास देकर उसकी माँ के अवतार में आए डोली के पास भेजा। अपनी नन्हीं बिटिया को अपने सामने देख सीमा के चेहरे पर ज्यों धूप खिल उठी हो … अपलक अपनी बेटी को निहारती रही… फिर गहरी सांस लेते हुए बोली ’’ इधर आओ मेरी प्यारी प्यारी बिटिया इधर आओ मैं तुम्हारी माँ हूं। …अपनी माँ के गले नहीं लगोगी! और बाहों से पकड़ते हुए उसने रेणु को कस के बांहों में समेट लिया । दोनों माँ-धी सुबक सुबक कर रो पड़ी…. । गंगा जमुनी अश्रुधार बह निकली तो भीड़ भी नयन जल से अर्घ दिए बिन न रह सकी। निमाणी छुड़ाई मेरी धी… इन पापियों ने मुझ से निमाणी छुड़ाई… अभी तो मेरी नन्हीं तू केवल दो वर्ष की ही तो हुई थी ! जब मुझ से छुड़ा दी गई ! अभी तुमने दूध पीना भी नहीं छोड़ा था कि…! बेटा में तो जीना चाहती थी , तुम्हें पढ़ाना लिखाना चाहती थी , बड़ा आॅफिसर बनाना था तुझे ….सीमा ने डोली के मुख से शिकायत दर्ज करवाई । रेणु सुबकती हुई, हाँ में हाँ मिलाती रही। पब्लिक से खचाखच भरे हाल में बैठे लोग सिर पर हाथ रखे हूँ हूँ कर बड़े ध्यान से सीमा की बातें सुन रहे थे।
अब तो गांव में बचे खुचे लोग भी अपने दैनिक कार्य निपटा कर चीख पुकार सुुनते हुए आंगन में आ जमा हो गए थे। सभी एक दूजे का मुंह देख गिट-मिट गिट-मिट कर रहे थे। सीमा ने रेणु को चूम चूम कर लाल कर दिया। जब उसका मन भर गया तो रेणु के हाथ से पानी पीया , एक रोटी खाई फिर जी भर कर फिर पानी पीया और खुश हो कर अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर-फेर कर आशीष दीया। अब तंात्रिक ने मोरचा सम्भाला। ’’अब आखर काटो पाप्पा ! खुलकर बोलो ! क्या है तुम्हारे मन में …खुल कर बोलो। तुम्हें किसी का कोई डर भय नहीं ! पूरा परिवार दुखी है …पाप्पा, इसी लिए तुम्हें याद किया है। अपने मन की गांठें खोलो अब खुल कर बोलो। तुम्हारे साथ क्या हुआ हमें किसी को कुछ भी नहीं मालूम एक एक बात बताओ और परिवार को रास्ता लगाओ पाप्पा ! हाथ जोड़ कर अर्ज है। ’’अब मुझे कहने दो … मैं सब सच सच कहना चाहती हूं। मुझे किसी का कोई डर नहीं है। तुम सब ध्यान से सुनना!…. हां तो सुनो! हमारे विवाह को पाँच वर्ष होने को आए थे लेकिन …औलाद के नाम पर कुछ नहीं था। अब घढ़ कर तो कोई डाल नहीं सकता न! ये सब तो उस प्रभु के हाथ की माया है। सभी पण्डित वैद्य , तांत्रिक देख लिए थे। जो भी किसी ने कहा वो सब टूणा-टोटका कर छोड़ा लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। चिंता मुझे भी थी!… लेकिन किया क्या जा सकता था। जब कोई आस शेष न रही तो घर पर बातें होने लगी, इतनी बड़ी जमींदारी, इतना कारोबार किसके लिए !… हमारे पास एक तो है, लेकिन बेटा! …तुम्हारा तो वंश ही ….!
मेरी सास ने भी अपने बेटे के कान भरने शुरू किए ! और ये उनकी बातों में आ गया। …आखिर नई दुल्हन का कोरा कोमल और गठा हुआ वदन इसके खयालों में महकने लगा। सभी मर्द लोग ..ध्यान से सुनना ! तुम सब मर्द जात ऐसे ही होते हो! ऐसा कोई मौका छोड़ना ही नहीं चाहते…।’’
सीमा ने सांस ली, दो गिलास पानी के पीए और आगे बताया ये मेरा खसम ! जो मेरे लिए जान देने को तैयार रहता था, मेरा दुश्मन बन गया। मुझसे कहने गला कि इसे तो दूसरी शादी करनी है तुम जीयो या मरो….! ’’ घर पर हर रोज झगड़े होने लगे। हंसता खेलता घर कलह का अखाड़ा बन गया। मैंने बहुत समझाया लेकिन लालू नहीं माना! मैं भी पढ़ी लिखी थी तो ….इतनी आसानी तो हार मानने वाली न थी। मैंने भी कह दिया देख लालू अगर तू नहीं मानेगा तो मैं तुझे अन्दर करवा दूगीं ! मैं पूलिस में कम्पलेंट करवाउंगी। इतना तो तू जानता ही होगा कि एक पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह गैर कानूनी होता है इस पर लालू ठठा मार कर हंँस पड़ा था। कहने लगा ’’ तू नहीं जानती क्या ! हमारे यहां यानि हिमाचल के जनपद सिरमौर के गिरिपार में बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन है। इतना ही नहीं भारत के हिमाचल के जनपद सिरमौर और किन्नौर के कुछ भागों में तथा केरल में तो बहुपतित्व प्रथा भी प्रचलन में है। बहुपत्नी प्रथा का उल्लेख तो हमारे पौराणिक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। राजा दशरथ की तीन पत्नियां थीं । भगवान कृष्ण का उदाहरण हमारे सामने है।
तुम्हें तो मालूम होना चाहिए कि मेरे पिता की भी दो पत्नियां थीं। पूरा परिवार एक तरफ हो गया तो मैं अकेली पड़ गई। अब मंैने भी सब ऊपर वाले पर छोड़ दिया था। फिर अचानक एक चमत्कार हुआ, मैं गर्ववती हो गई। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। पूरे भोज में खुशी की लहर दौड़ गई । लेकिन मेरे परिवार में किसी को कोई खुशी नहीं हुई ! मानो कुछ हुआ ही नहीं। लेकिन मैं अब निश्चिंत हो गई थी । मैं आश्वस्त थी कि अब खतरा टल गया है। कहते हुए डोली की आँखें लगातार बरस रही थी।
… मैं अपने आने वाले बच्चे के लिए सपने बुनने लगी और घर के काम में खो गई । मैं तो जैसे भूल ही गई थी कि कुछ हुआ भी था। नौ महीने कब बीत गए, पता ही नहीं चला और मेरी कोख से परी सी सुन्दर बेटी ने जन्म लिया। गांव भर में खुशियां मनाई गई। लोग कहने लगे ’’सीमा की पुकार ऊपर वाले ने सुन ली ! बेटी हुई है तो अब बेटा भी हो जाएगा अगली बार। बैचारी सीमा बहुत परेशान थी । है प्रभु तेरे घर में देर है पर अंधेर नहीं है।
रात के दो बज गए थे लेकिन सीमा की आत्मकथा अभी बाकी थी…सभी सगे संबंधी रिश्तेदार, गांव के बच्चे, बड़े बूढ़े सब यूँ बैठे थे ज्यों सतसंग में भक्त लोग एकाकार हो गए हों। असंख्य जोड़ी कान खड़े और आंखें उसके चेहरे पर गड़ी थीं। डोली के अवतार में सीमा ने आगे कहा ’’मेरी बेटी अभी एक वर्ष की भी नहीं हुई थी कि लालू ने दूसरी शादी कर ली। मेरा कलेजा फटने को हुआ ! मुझे लगा ज्यों लालू मेरी छाती को आर्मी शूज पहन कर रोंद रहा हो … लेकिन मैं अपनी बेटी के लिए जीना चाहती थी।’’
’’लालू ने दूसरी शादी कर ली थी …लेकिन मैं भी कहां पीछे हटने वाली थी! …चार दिन तक दोनों को इकट्ठे नहीं सोने दिया! इन छोटे मोटे आंधी तूफानों से तो लड़ लेती लेकिन… मुझे इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि मेरी जिंदगी में ’हुदहुद’ आने वाला है…. जो सब कुछ बहा ले जाएगा! हाँ हुदहुद के आने से पहले एक डरावनी शान्ति जरूर छा गई थी। पाँचवें दिन मेरी सास ने खीर पटांडे बनाए। पूरे परिवार ने पेट भर खाना खाया । लालू ने अपने हाथों से मुझे खीर पटांडे थाली में डाल कर दिए। खीर में खूब शक्कर घी डाल कर मेरे पति ने दिया। मैंने भी उस दिन सभी मन मुटाव भुला कर पेट भर खाया। उस दिन मुझे जरूरत ही नहीं पड़ी कहने की! मेरा पति स्वयं ही आ कर मेरे कमरे में सो गया। न कोई लड़ाई न झगड़ा न तू तू न मैं मैं …कोई न नुकर नहीं। मेरी आंख लगी ही थी कि मेरे पेट में तीखा दर्द होने लगा। ’’उ … आइ … ’’सीमा ने जोर की चीख मारी और आगे बताया ’’ मेरा कलेजा खाया… मेरे ही पति ने मेरा कलेजा खा लिया…मुझे खीर में डाल कर जहर दे दिया था …. मेरी आंखें बंद हो रही थी… तो ये दोनों मेरे सामने गले में बाहें डाले हँस रहे थे। ’’इ …निमाणी रह गई ! मेरी बेेटी मेरी याणी मुझ से छुड़ाई गई। इन्हें तो मैं कभी माफ न करूं ! सीमा ने आँखें बड़ी बड़ी करते हुए दोनों मुट्ठियां भींचते हुए लालू की ओर उंगली करते हुए कहा तू कानून से तो बच गया ! लेकिन मुझ से कैसे बचेगा! और अपनी टांगों को भुजाओं में समेटते हुए सिर घुटनों में दे दिया। उसका रूदन अभी रूका नहीं था …सुबक सुबक के रोने से उसका गला बार बार सूख रहा था। तांत्रिक ने इशारा किया और नगाड़े दमयानु , छनका फिर से पर्वतों को कंपाने लगे। ’’इ इ …।’’ डोली की चीख के साथ ही तांत्रिक ने फिर इशारा किया और बजंत्री फिर शांत हो गए। अब तांत्रिक ने अर्ज किया ’’.अब गलती फल्ती माफ करना पाप्पा! और परिवार को रास्ता देना …इन्सान गलती का पुतला है ….हम सब तुम्हारे गुनेहगार हैं। जो भी दण्ड लगाएंगे हमें मंजूर है पाप्पा ! लेकिन घर में सुख शांति दे। हम सब तेरे चरणों में हैं पाप्पा!…
’’उ … कान खोल कर सुन ! तांत्रिक ! तेरी गवाही पर इन को छोड़ रही हूं। नहीं तो मैंनेे ठान लिया था इनका बीज ही उगाल दूं ! अब याद रखना और भूल जाए तो मुझे दोष मत देना । छठे महीने का मेरा हिस्सा देना ! फसल कमाई से ! और मेरी बेटी को तंग मत करना ! इसे खूब पढ़ाना लिखाना…’’उ … हु ह हु अब मुझे इजाजत दो, ही…. ! ’’ एक जोर की चीख के साथ ही सीमा शांत हो गई। डोली के कपड़े पसीने में तर हो चुके थे। उसने पानी के चार लोटे पीए और वहीं अचेत हो कर गिर गया। अब कमरे में भरी पब्लिक के बीच से खुसर फुसर की आवाजें आने लगी। जितने मुंह उतनी बातें।

अनन्त आलोक

अनन्त आलोक

नाम - अनन्त आलोक जन्म - 28 - 10 - 1974 षिक्षा - वाणिज्य स्नातक शिक्षा स्नातक, पी.जी.डी.आए.डी., व्यवसाय - अध्यापन विधाएं - कविता, गीत, ग़़ज़ल, हाइकु बाल कविता, लेख, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, लघुकथा, लोक - कथा, मुक्तक एवं संपादन। लेखन माध्यम - हिन्दी, हिमाचली एंव अंग्रेजी। विशेष- हि0प्र0 सिरमौर कला संगम द्वारा सम्मानित पर्वतालोक की उपाधि - विभिन्न शैक्षिक तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा अनेकों प्रशस्ति पत्र, सम्मान - नौणी विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान व प्रशस्ति पत्र - दो वर्ष पत्रकारिता आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित - दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित - काव्य सम्मेलनों में निरंतर भागीदारी - चार दर्जन से अधिक बाल कविताएं, कहानियां विभिन्न बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रकाशन - तलाश (काव्य संग्रह) 2011 संपर्क सूत्र - साहित्यालोक, बायरी, डा0 ददाहू, त0 नाहन, जि0 सिरमौर, हि0प्र0 173022 9418740772, 9816642167

One thought on “हिमाचली कहानी : पापड़ा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी !

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