कवितापद्य साहित्य

खूबसरत भ्रम!

जानता हूँ मैं

यह ध्रुव सत्य है,

पुराने दिन कभी

लौटकर नहीं आयगा,

जीवन फिर कभी

पहले जैसा नहीं होगा,

फिर भी …

जब कभी नया चाँद उगता है

अँधेरी निशा में

चाँद की दुधिया रश्मि

धरती के हर कोने में

दुधिया रंग बिखेर देती है,

मेरे मन में भी

उम्मीद के रंग

भर जाता है |

चाँदनी के उजाले में

मेरा पागल मन-मयूर  

नाचने लगता है,

आत्म विस्मृत हो

अतीत के सुनहरे

दिनों में खो जाता है |

भोला मन, भूल जाता है …

“जीवन के मरुस्थल में

वह प्यास से छटपटा रहा है,

नज़र के सामने गोचर

बालू में जल-ताल नहीं

नज़र का धोखा है

मृग-मरीचिका है,

यह एक भ्रम है|”

मन के सुख के लिये

विवेक की चाहत है,

मन का भ्रम कभी न टूटे

आखरी स्वांस तक

यह खुबसूरत भ्रम

बरकरार रहे |

© कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !

2 thoughts on “खूबसरत भ्रम!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • कालीपद प्रसाद

      धन्यवाद विजय कुमार जी !

Comments are closed.