लघुकथा

~नाकाम साजिश ~~

“तुम अब तक कुछ नहीं की, अब कैसे डिबेट में जाने की बात कर रही हो | नाम डुबो के आओगी स्कूल का । “
“सर मौका मिला ही नहीं ,और न पूछा गया कभी क्लास में । अभी तक वही जा रहें थे जो जाते रहें थे। “

खूब लड़-झगड़ आखिरकार अपनी जगह डिबेट में पक्की कर ली हिमा ने ।
“जाओ मना नहीं करूँगा ,पर कुछ कर नहीं पाओगी । ” टीचर अपनी चहेती के ना जा पाने पर क्रोध से बोले ।
सुनते ही आग बबूला हो उठी हिमा पर चुप्पी साध ली । माँ की बातें याद आ गयी बड़ो की बात यदि बुरी लगे यदि कभी ,तो मुहँ से नहीं अपने काम से जबाब देना ।
बीस दिनों बाद डिबेट में प्रथम आने का अवार्ड पूरे ऑडोटोरियम में प्रिंसिपल से लेते हुये उस टीचर को नजरों से ही ज़बाब दे रही थी हिमा।
टीचर यह कह मुहँ पीट लाल कर रहे थे कि “तुम तो बड़ी प्रतिभाशाली हो, अब तक कहाँ छुपी थी ये तुम्हारी उड़ान । अगली उड़ान के लिय फिर तैयार रहना |” शाबाशी देते हुए बोले || Savita Mishra

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “~नाकाम साजिश ~~

  • विजय कुमार सिंघल

    बहिन जी,यह कहानी पहले छप चुकी एक कहानी का सारांश लगती है.

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