गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : भागीरथ-प्रयास बिन पुरखे श्राप से नहीं छूटते

माना वक्त की शाख से कभी लम्हे नहीं टूटते
अहसास जुड़े हो रूह से गर साथ नहीं छूटते
कदम दर कदम कोशिशे जरूरी है जूनून की
जिन्दगी में हमेशा किस्मती छींके नहीं टूटते
टूटते सितारे का दर्द लहू संग बह उठा मुझमे
झूठे नेताओ के राजनैतिक अहंकार नहीं फूटते
दूसरे को गाली,नहीं झांकते अपने गिरेबान में
भ्रष्टाचार उन्मूलन सृजक से साहिब नहीं छूटते
राजनैतिक सरिता गदली हो चुकी बुरी तरह
भागीरथ-प्रयास बिन पुरखे श्राप से नहीं छूटते
—— विजयलक्ष्मी

विजय लक्ष्मी

विजयलक्ष्मी , हरिद्वार से , माँ गंगा के पावन तट पर रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हमे . कलम सबसे अच्छी दोस्त है , .