कविता

नशा होली का

होली की हुड़दंग

बन्ना सा वन

जमे बन ठन के

बांधे मुरेठा केसरिया

चीथड़े पोशाकें

बदरंग चेहरे

सतरंगी बनाए

जोश फगुनिया

होली की हुड़दंग

भेज कनकनिया

आये दिन कुनमुनिया

शुरू हुए उठंगुनिया

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “नशा होली का

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जब भारत में होते थे ,तो होली खेलते थे ,पुरानी यादें ताज़ा हो गई .

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