शिशुगीत

शिशुगीत – १७

१. आम का सीजन

आया सीजन आम का
जीभर के हम खाएँगे
छीन गुठलियाँ दीदी से
उसको खूब चिढ़ाएँगे

२. लीची का बाजार

मीठा-मीठा महक उठा फिर
लीची का बाजार है
जिसदिन घर में आती है ये
लगता ज्यों त्योहार है

३. मानसून

मानसून आनेवाला है
मिलकर हर्ष मनाओ जी
बना-बना कागज की नौका
स्वागत में जुट जाओ जी

४. रेनकोट

पापा पहनें काला-काला
मम्मी का रंगीन है
भैयावाला पूरा सादा
लगे बहुत शालीन है
मैं भी एक मँगाऊँगा
पहन स्कूल को जाऊँगा

५. छतरी

वर्षारानी धरती छूकर
जब से हँसती गुजरी है
लगीं दुकानों में फिर दिखने
रंग-बिरंगी छतरी है
मुझको चिंता थोड़े है
पास मेरे पहले से है

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन