हास्य व्यंग्य

अपना नहीं है कोई कमाल.

आज बात की टमाटरों से,
दिखते थे वे लालमलाल,
हमने पूछा, ”शिमला होकर आए हो क्या,
या गुस्से से सुर्ख़ हैं गाल!”
”शिमला नहीं गए हैं भाई,
गुस्से का भी नहीं सवाल,
महंगाई ने लाल किया है,
अपना नहीं है कोई कमाल.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

6 thoughts on “अपना नहीं है कोई कमाल.

  • नीतू सिंह

    सुंदर अर्थपूर्ण कविता के लिए बधाई।

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी नीतू जी, अति सुंदर टिप्पणी के लिए आभार.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन ,कविता बहुत अछि लगी ,इस छोटी सी कविता में एक किताब ही छुपी हुई है ,टमाटर के शब्दों पर हंसें या रोयें, बात एक जैसी ही है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते आदरणीय बहिन जी। टमाटर पर आपकी कविता अच्छी लगी। आश्चर्य है कि ईश्वर सभी वस्तुएं हमें मुफ्त में देता है और हम अपने स्वार्थ के लिए उन्हें महगा कर खुस होते हैं। महंगाई के पैसे जिन लोगो की जेब में जा रहें हैं वह बहुत खुस होंगे। टमाटर का कोई कसूर नहीं है। सादर।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक टिप्पणी के लिए आभार.

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