दिलासा ही दिलाया जा रहा है
दिलासा ही दिलाया जा रहा है
अभी भी आज़माया जा रहा है
यक़ीनन ग़म छुपाया जा रहा है
जो इतना मुस्कुराया जा रहा है
जो सदियों से दबे कुचले गए हैं
उन्हें ही फिर सताया जा रहा है
कोई मतलब रहा होगा यक़ीनन
तभी मक्खन लगाया जा रहा है
है जिनकी प्यास कतरे भर की जितनी
उन्हें सागर पिलाया जा रहा है
यक़ीनन रास्ता निकलेगा कोई
दिवारों को गिराया जा रहा है
चुनावी दौर के जुमलों से बचना
फ़क़त सपना दिखाया जा रहा है
रदीफ़-ओ-काफ़िया के गुर सिखाकर
हमें शायर बनाया जा रहा है
रखो ये याद, उतना ही उठेंगे
हमें जितना दबाया जा रहा है
कहीं पर कोयले की लूट है तो
कहीं चारा ही खाया जा रहा है
— महेश कुमार कुलदीप ‘माही’
जयपुर, राजस्थान