दोहे “रहा पाक ललकार”
बैरी है ललकारता, प्रतिदिन होकर क्रुद्ध। हिम्मत है तो कीजिए, आकर उससे युद्ध।। — बन्दर घुड़की दे रहा, हो करके
Read Moreबैरी है ललकारता, प्रतिदिन होकर क्रुद्ध। हिम्मत है तो कीजिए, आकर उससे युद्ध।। — बन्दर घुड़की दे रहा, हो करके
Read Moreगीतात्मक मुक्त काव्य, “चल अब लौट चलें” अब हम लौट चलें, चल घर लौट चलें चाखी कितनी बानगी, चल अब
Read Moreमानव के मन में बसी, मानवता की चाह दानव की दानत रही, कलुष कुटिलता आह कलुष कुटिलता आह, मुग्ध पाजी
Read Moreकाफिया- अर, रदीफ़- जाते , वज्न- 1222 1222 1222 1222 बहुत अब हो गई बातें, बहुत अरमान शुभ रातें विवसता
Read Moreबर्फ़ीले पर्वत धरें, चादर चाह सफ़ेद लाल तिरंगा ले खड़ा, भारत किला अभेद भारत किला अभेद, हरा केसरिया झंडा शुभ्र
Read Moreआहिस् से आते कंपकंपाते हाथों को देखकर सोचा कि इक गीत लिखूँ झुर्रियों से सराबोर उसका शरीर देख,सूती धोती जनेऊ
Read More” हाँ माँ ! वही धनिया । अपने कारखाने में ही काम करती है । बहुत अच्छी और मेहनती लड़की
Read Moreअच्छा लगता है….. सुबह सबेरे ग्रीन चाय का एक प्याला और रात की खुमारी ओढ़े हुए ढ़ेर सारी बातें करना,
Read More