लघुकथा

पगली

बस्ती की औरतों को सजा धजा देख, कमला खुश हो सिंदूर, बिंदी, चूडियाँ और आलता लगा खुद को नई नवेली दुल्हन से कम नहीं समझ रही थी, लेकिन आस पडोस वाले बातें करने लगे कि कभी पति को बस्ती में देखा नहीं और ये छठ बरत वाले दिन सिंगार कर किसके लिए तैयार हुई है ? हाथ में पूजा का थाल ले निकली तो घर के सामने कुछ लोग, ” पागल पागल ” बोल चिल्ला रहे थे, तभी किसी ने पास पडा पत्थर का टुकडा उठा कमला के सर पर दे मारा, आव देखा न ताव वो जान बचाकर भागी, पीछे वहीं लोग पगली पगली चिल्ला, मारने के लिए दौड पडे।
शाम के धुंधले उजाले में कमला तालाब की तरफ भागी जा रही थी, तभी अचानक एक साया, कमला व बस्ती वालों के बीच आकर खडा हो गया तो कमला उस साये के पीछे छिपी, तभी भीड में से आवाज आई, ” सामने से हट, नहीं तो इस पगली के साथ साथ तुझे भी मार डालेंगे।”
“ये पागल नहीं मेरी पत्नी कमला है, कल ही मैं जेल से छूटा तो मालूम हुआ कि मोहल्ले वालों के तानों से दुखी हो, ये तुम लोगों की बस्ती में रहने लगी है।”
पति की आवाज पहचान पीछे से कमला सामने आई तो भीड छटती नजर आने लगी, तभी कमला की सहेली पूजा का थाल देते हुए बोली,” देख कमला तेरी जिंदगी में उजाला हो गया।”और फिर कमला पति के साथ अपने दुखों के अंत की कामना लिए डूबते सूरज को अर्ध्य देने तालाब के पास एकत्र लोगों के बीच जल में उतर गई।

संयोगिता शर्मा

जन्म स्थान- अलीगढ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- राजस्थान में(हिन्दी साहित्य में एम .ए) वर्तमान में इलाहाबाद में निवास रूचि- नये और पुराने गाने सुनना, साहित्यिक कथाएं पढना और साहित्यिक शहर इलाहाबाद में रहते हुए लेखन की शुरुआत करना।