संस्मरण

मेरी कहानी 187

सुबह उठे और मशवरा करने लगे कि आज कहाँ जाना था तो मैंने कहा जसवंत ! इतने दिन हो गए लेकिन अभी तक गोवा की राजधानी पंजिम नहीं देखि, क्यों न आज पंजिम ही चलें। इस बात से सब सहमत हो गए। तैयार हो कर कैंटीन में ब्रेकफास्ट लिया और कैंटीन के खानसामे से पुछा कि पंजिम जाना कैसे आसान है तो उस ने बताया कि हम को कैलनगूट हाई स्ट्रीट से बस ले लेनी चाहिए और मोपासा के दुसरी ओर ही मंडोवी नदी पर फैरी में बैठ जाएँ, यह फैरी दुसरी ओर पंजिम जिस को पणजी भी कहते हैं, पहुंचा देगी। उस की बात मान कर हम ने कैलनगूट से बस ले ली। जब बस में बैठे तो कंडक्टर किसी को भी टिकट नहीं दे रहा, वैसे ही पैसे पकड़ रहा था। इस बात से हमें बहुत हैरानी हुई क्योंकि आज तक ऐसा कभी देखा ही नहीं कि बस में कोई टिकट ना दे। चार या पांच रुपये टिकट होंगे, पूरा याद नहीं, दे कर हम बस में बैठ गए। यह बस जल्दी ही रहाइशी इलाके में जाने लगी। काफी दूर जा कर हम मोपासा शहर में आ गए। यहां ट्रैफिक बहुत थी क्योंकि इस शहर में दुकाने शॉपिंग सेंटर बहुत थे। इस भीड़ से निकल कर पंजिम की ओर जा रहे थे लेकिन यह फासला दस किलोमीटर से भी ज़्यादा लगा। एक जगह बस खड़ी हो गई और हम बस से उत्तर पड़े। कुछ दूर चलने पर मंदोवी नदी अब हमारे सामने थी। नदी की चौड़ाई काफी बड़ी थी। अभी फैरी आई नहीं थी। यहां काफी खुली जगह थी और छोटी सी बन्दरगाह जैसी लग रही थी और काफी दुकाने भी थीं। मंदोवी के किनारे ईंटों की सीडीआं भी थी। मैं और जसवंत सीढ़ियों से उत्तर कर नदी के पानी तक चले गए और इस में मछलियों को देखने लगे जो पानी में तैर रही थीं। नदी के दुसरी ओर खड़ी फैरी हमे दिखाई देती थी जो अब हमारी ओर आणि शुरू हो गई थी। मैं और जसवंत ऊपर आ गए और फैरी के लिए इंतज़ार करने लगे। और भी बहुत लोग नदी के दुसरी ओर पंजिम जाने के लिए एकत्र हो गए थे। यह ऐसे ही था जैसे बस पकड़ने के लिए लोग इंतज़ार करते हों। फैरी के ऊपर इंजिन का धुआं निकलता दीख रहा था। कुछ ही मिनटों में फैरी किनारे आ लगी और गेट खुल गया। कुछ मोटर साइकल एक कार और बहुत से लोग धीरे धीरे उतरने लगे।
जब सब लोग उत्तर गए तो हम चढ़ गए, एक कार और दो तीन स्कूटर भी चढ़ गए। धीरे धीरे यह प्लैटफार्म सा एरिया भरने लगा। हम लोहे की दीवार के साथ खड़े हो गए। जब अछि तरह फैरी भर गई तो किसी लिवर से यह गेट बंद कर दिया गया और फैरी पानी में चलने लगी। फैरी के इंजिन की आवाज़ ऐसी थी जैसे डीज़ल वाले ट्रैक्टर की आवाज़ हो। मंदोवी की चौड़ाई काफी थी। जसवंत बोला, मामा ! यह तो दरिया नील जैसी है। मैंने कहा कि यह बिलकुल ऐसे ही लगती है। अभी तक तो फैरी चलती थी, लेकिन किसी ने बताया था कि यहाँ ब्रिज बन जाएगा और फैरी बंद हो जायेगी। अभी यह फैरी वहां है या नहीं, मुझे मालूम नहीं। कुछ ही मिनटों में हम नदी के पार हो गये। इस तरफ भी फैरी पकड़ कर मंदोवी के दुसरी ओर जाने वाले बहुत लोग इंतज़ार कर रहे थे और कुछ मोटर साइकल सवार भी खड़े थे। हम ऊपर आ गए और पंजिम की सड़कों पर घूमने लगे। तरसेम, छड़ी के साथ धीरे धीरे चल रहा था लेकीन हमें कोई जल्दी तो है नहीं थी। आगे पंजिम की दुकाने और बाज़ार बहुत साफ़ लग रहा था। पंजिम में हम ने कोई ख़ास मौनूमैंट नहीं देखा। इस बात की मुझे समझ नहीं आ रही कि पंजिम की इत्हासिक जगहों को देख्ने का प्लैन हम ने क्यों नहीं बनाया, जब कि वहां देखने की चीज़ें काफी थीं। चर्च मंदिर मस्जिद और एक गुरदुआरा भी था। इस बात का मुझे अफ़सोस ही रहेगा।
पंजिम शहर पुर्त्गालिओं ने 1842 में बनाया था, पहले राजधानी दुसरी ओर ओल्ड गोवा में होती थी। इस की आबादी अभी भी इतनी ज़िआदा नहीं है लेकिन जितना हम ने देखा उस को देख कर अंदाजा लगाना आसान है कि यह शहर बहुत सुन्दर है। पहले गोवा दमन और दिओ इकठे ही होते थे लेकिन अब कुछ सालों से गोवा अकेला ही एक प्रांत है और शायद देश का सब से छोटा सूबा है। हम घूम रहे थे और जगह जगह छोटे छोटे लड़के ढोल बेच रहे थे और हमारी तरफ आते और ढोल लेने को कहते। आखर मैने एक ढोल ले ही लिया, याद नहीं शायद तीन सौ रूपए का होगा। दुकानों के चक्र लगा ही रहे थे कि जसवंत मेरे खरीदे हुए ढोल की तरफ देख कर बोला, “मामा ! यह ढोल तो फटा हुआ है “, देखकर मुझे भी मालूम हो गया कि वाकई ढोल फटा हुआ था। हम उस लड़के को ढूंढने लगे। दुकानों को हम देख रहे थे ताकि हमें कोई गोवा की कोई अछि चीज़ मिल जाए लेकिन कोई ख़ास चीज़ अपने मतलब की हमें मिली नहीं। कुछ दूर गए तो वोह ही लड़का जो ढोल बेच रहा था, हमें मिल गया। ढोल उस ने उसी वक्त बदल दिया। पंजिम शहर हमें पंजाब के चंडीगढ़ जैसा साफ दिखाई देता था। अब हमें भूख लगी हुई थी और एक होटल में दाखल हो गए जो दो मंजला था और हम दुसरी फ्लोर पर चले गए। काफी लोग बैठे खा पी रहे थे। यह शाकाहारी होटल था और शायद मसाला डोसा इन की स्पेशिऐलिटी होगी, क्योंकि सब लोग मसाला डोसा ही खा रहे थे। स्टील की थालियों में छोटी छोटी कई प्रकार की दालें और चटनियाँ देख कर भूख चमक उठी थी। एक लड़का आया और हम ने सब के लिए आर्डर दे दिया। जब थालियां हमारे आगे रखी गईं तो देख कर ही आनंद सा आ गया। बड़े बड़े डोसे और गोवा के मसालों में महकती हुई चटनियाँ, बस एक लुत्फ ही था। जी भर के खाने का आनंद लिया और होटल के बाहर आ कर फिर घूमने लगे। घँटा भर घुमते रहे और फिर आराम करने के लिए एक जगह सब बैठ गए। कुछ दूरी पर ही फैरी दिखाई दे रही थी, लोग उत्तर चढ़ रहे थे। अब हम बातें करने लगे कि अब आगे का किया प्रोग्राम था तो सब ने फैसला किया कि अगले दिन हंपी देखने चलें।
यहां बैठे बैठे ही जसवंत ने मोबाइल पे उस टैक्सी ड्राइवर से बात की और यह भी कहा कि दूर का सफर है, इस लिए गाड़ी बड़ी होनी चाहिए ताकि सब आसानी से बैठ सकें। टैक्सी वाले ने कहा कि वोह सूमों ले आएगा। उस ने यह भी बताया कि एक दिन जाने के लिए और एक दिन आने के लिए और एक दिन हम्पी देखने के लिए लगेगा । तीन दिन के वोह 12 हज़ार रूपए चार्ज करेगा। हमें यह कीमत वाज़ब ही लगी क्योंकि 2000 रूपए प्रति यात्री के हिसाब से यह ज़्यादा नहीं था। टैक्सी वाले ने कहा कि जाने में आठ घंटे लग जाएंगे, इस लिए हमें सुबह दस बजे निकल जाना चाहिए। टैक्सी वाले से बात हो गई, सब सैटल हो गया। हमारे पास ही एक रेहड़ी वाला था जो मूंगफली मुरूंडा बगैरा बेच रहा था। रेहड़ी पे मूंगफली का ढेर लगा हुआ था, जिस के बीच में मट्टी का छोटा सा मटका रखा हुआ था, जिस में से कोयलों का धुआं निकल रहा था। एक एक लफाफा सब ने लिया और वहीँ बैठ कर खाने लगे। छिलके, क्योंकि सबी लोगों ने बाहर ही फैंके हुए थे, इस लिये हम ने भी बाहर ही फैंकने शुरू कर दिए। बाहर रहने के कारण पहले पहले झिझक सी हुई कि छिलके ना फैंकें और फिर सभी मज़े से खाने लगे। हा हा, मोदी जी का सवशता अभियान अभी शुरू नहीं हुआ था। कुछ ही दूरी पर टॉयलेट्स के साइन दिखाई दे रहे थे, मूंगफली खा कर सभी उस ओर चले गए। वहां सफाई कर्मचारी नें पांच पांच रूपए लिए और हम भीतर दाखल हो गए, टॉयलेट्स की सफाई काबले तारीफ थी। बाहर आते ही हम फैरी की ओर चलने लगे। हमारे जाते ही फैरी आ गई और हम इस में सवार हो कर दूसरे किनारे आ पहुंचे। कुछ देर इस मिन्नी बंदरगाह पर घूमने के बाद हम ने बस पकड़ ली और कैलनगूट आ पहुंचे। कमरे में आ कर चाय पी। सबी आराम करने लगे लेकिन मैं और जसवंत पाउंड कैश कराने के लिये बाहर चल पड़े क्योंकि दूसरे दिन के लिए हमें काफी पैसे चाहिए थे।
कैलनगूट हाई स्ट्रीट में आ गए। जगह जगह ऐसे बोर्ड लग्गे हुए थे, जो बिदेशी मुद्रा बदलते थे। एक जगह दुसरी मंज़िल पर एक ऑफिस था। उस से पुछा तो उसने जो रूपए पाउंड के बताये, हमें कम लगे। उठ कर हम दुसरी जगह आ गए। इस ने एक रूपए ज़्यादा भाओ दिया। यहां हम ने पैसे ले लिए। जब बाहर निकले तो एक सरदार जो हमें हवेली में मिला था, आता दिखाई दिया। बातों बातों में हमें पता चला कि गोवा में वोह कोई प्रापर्टी खरीद रहा था। उस ने कई बिल्डरों के नाम बताये। वोह सिंह जब चला गया तो जसवंत कहने लगा, ” क्यों ना हम भी प्रापर्टी के बारे में पता करें। उस सरदार ने एक बिल्डर के बारे में बताया था, जो दूर नहीं था, सिर्फ कैलनगूट हाई स्ट्रीट से कुछ ही दूरी पर था। एक छोटी सी रोड पर हम चल पड़े। कोई दो सौ गज़ की दूरी पर ही हमें उस बिल्डर का बोर्ड दिखाई दिया। इस में से ही छोटी सी एक गली थी। जब हम इस के भीतर गए, तो आगे मल्टी स्टोरी फ़्लैट थे जो चकोर शक्ल में बने हुए थे। चारों ओर सात आठ मंजला फ़्लैट बने हुए थे और दरमियान में एक बड़ा सा स्विमिंग पूल था। हम ऑफिस में जा घुसे जो काफी बड़ा था और इस के एक कॉर्नर में बहुत से गोल किये हुए मकानों के नक़्शे पड़े हुए थे। उस शख्स ने उठ कर हाथ मिलाया और ज़्यादा बातें जसवंत ने ही कीं। बातें करते करते उस ने बताया कि इन फ्लैटों की दुसरी ओर जो खेत हैं, उन में वोह नए फ़्लैट बना रहे हैं। फिर वोह हमें उन खेतों की ओर ले गया यहां ईंटें और बजरी के ढेर लगे हुए थे और जिस से मालूम होता था कि इस जगह बिल्डिंग उसारी जाने वाली थी। फिर वोह हमें उन फ्लैटों में ले आया, यहां कुछ कुछ फ्लैटों में अभी भी पेंट बगैरा हो रहा था। तीन बैड रूम के एक फ़्लैट को देख कर हम खुश हो गए क्योंकि जिस हिसाब से यह बना था, बहुत ही सुन्दर लग रहा था और यह था भी ग्राउंड फ्लोर पर। इस को देख कर हम बाहर आ गए और एक तरफ कैफे भी बना हुआ था। काफी पीने के लिए अंदर चले गए। काफी पी के हम फिर उस के आफिस में चले गए। हम ने अपने नाम ऐड्रैस और टेलीफोन नंबर लिखवाये। बिल्डर ने बताया कि जो फ़्लैट हम ने देखा था, ऐसे तीन फ़्लैट फॉर सेल थे। फिर उस ने यह भी बताया कि अगर हम ने किराए पर फ़्लैट देने थे तो वोह हमें पचास हज़ार रूपए साल का किराया हमारे आकउंट में जमा करा दिया करेगा और अगर हम हर साल गोवा में हॉलिडे के लिए आना चाहें तो हमें छै हफ्ते के लिए फ्री फ़्लैट देगा। जितनी कीमत फ़्लैट की उस वक्त उस ने हमें बताई, वोह हमें वाज़ब ही लगी थी और हमारे बजट के दायरे में ही थी । । हम ने फैसला कर लिया कि दो फ़्लैट ले लेंगे।
उस बिल्डर के ब्राउचर लिए और यह बोल कर कि हम अपने घर मशवरा करके उसे बता देंगे, हम अपने होटल की तरफ आ गए और यह बातें कमरे में बैठ कर हुईं तो कुलवंत ने उसी वक्त बगैर देखे हाँ कह दी, वोह तो सुन कर ही खुश हो गई क्योंकि गोवा हमें बहुत पसंद आया था। तरसेम और उस की पत्नी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और यह ठीक ही था क्योंकि वोह दोनों पति पत्नी पड़े लिखे नहीं थे और उन के लिए यह सरदर्दी ही थी। रात का खाना खाने के लिए आज हम ने एक इंग्लिश रैस्टोरैंट में खाने का मन बना लिया जो हमारे होटल से दूर नहीं था और इसी कैलनगूट की हाई स्ट्रीट में था । चलता. . . . . . .