गीत/नवगीत

गीत

(राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी पर निजी भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाने पर प्रतिक्रिया ज़ाहिर करती मेरी नयी कविता)

हम तो ठहरे आम आदमी, अर्थ नीति का ज्ञान नहीं
मिल जाए दो वक्त रोटियां, और अधिक अरमान नहीं

बंद हुए जो नोट पुराने, थोड़े से घबराये हैं
माना अच्छे दिन से पहले कष्ट भरे दिन आये हैं

लेकिन हमने इन कष्टों में, हल्ला होते देखा है
घोटालों के सरदारों का धीरज खोते देखा है

जिस पंजे की पांचो उंगली, डूबी भ्रष्टाचारों में
वो ही आखिर क्यों चीखा है, टीवी में अखबारों में

देखा है,”पत्थर की देवी” कैसे छाती फाड़े है
देखा है “बंगलादेशी दीदी” किस तरह दहाड़े है

देखा है “गुलाम” दहशत का, जनहित की करता बातें
जिनके खुद परिवार में झगड़ा, बाँट रहे हैं सौगातें

उनको ज्यादा दर्द हुआ है, जिनके ज्यादा पाप रहे
अरबों खरबों खूब उड़ाये घोटालों के बाप रहे

भली-बुरी इस बंदी में चलिये इतना तो काम हुआ
जमाखोर नेताओं का थोड़ा तो काम तमाम हुआ

लाइन में लगती जनता में ये नारे पुरजोर लगे
संसद को अवरुद्ध कराते, सारे नेता चोर लगे

उन चोरों की सरदारिन का पप्पू भी बौराया है
मोदी खुद भ्रष्टाचारी है, ये आरोप लगाया है

यूं लगता है, चोर सुनाये गीत आज रखवाली का
गंगा जल को डांट रहा है, कीडा गन्दी नाली का

यूं लगता है त्याग तपों को गाली दी अय्याशी ने
भारत माँ पर कीचड़ फेंका, इटली की बदमाशी ने

जिस मोदी की सगी भतीजी, बिन इलाज मर जाती हो
जिस मोदी की माता खुद चलकर ऑटो से जाती हो

जिस मोदी के भाई अब भी सादा जीवन जीते हों
जिस मोदी के पास नहीं कुछ खाते सारे रीते हों

जो मोदी अवकाश लिए बिन अपना फर्ज निभाता है
जो मोदी दीवाली भी सेना के साथ मनाता है

जो मोदी अट्ठारह घंटे, काम धुनी में रहता हो
जो मोदी हर भाषण में भारत माँ की जय कहता हो

वो मोदी हरगिज़ भी पैसा ख़ोर नहीं हो सकता है
भारत माँ का सच्चा सेवक चोर नहीं हो सकता है

मैं हूँ भक्त, निडर कहता हूँ, नहीं डरूं बेशर्मो से
मैं मोदी का भक्त बना हूँ, मोदी जी के कर्मों से

मोदी जी भी चोर अगर हैं, उनका नंबर आने दो
सारे परदे हट जाएंगे, तीस दिसंबर आने दो

दो कौड़ी का पप्पू बोले, इतना बड़ा बवाल नहीं
हमको उत्तर नही मिलेगा, ऐसा कहीं सवाल नहीं

कवि गौरव चौहान कहे, यह आर पार की बेला है
मध्य, अमरता और मृत्यु के, मोदी खड़ा अकेला है

अगर नोट बंदी साजिश है, हम भी वचन सुधारेंगे
सवा अरब की जनता के संग, हम भी जूते मारेंगे

— कवि गौरव चौहान