लघुकथा

असली वजह

  आशा चौबीस वर्षिया सभी सद्गुणों से युक्त बुद्धिमान युवती थी । राजनीति के गिरते स्तर से चिंतित आशा ने एक बहुत बड़े नेता के आवाहन पर एक राजनैतिक दल की सदस्यता ले ली और अपने स्तर पर अधिक से अधिक समय वह सामाजिक कार्यों में बिताने लगी ।
स्थानीय नेता नारायण जी तक उसकी पहुँच हो गयी थी । उनकी मदद से वह जनता की समस्याओं को शीघ्रता से निबटाने लगी । अपने क्षेत्र में वह अपने हसमुख सहयोगी व मिलनसार स्वभाव की वजह से काफी लोकप्रिय हो गयी । नारायणजी ने उसे अपने साथ सहायक के तौर पर दौरे पर साथ जाने का आग्रह किया जिसे आशा ने बड़ी विनम्रता से इंकार कर दिया ।
पिंकी ने भी उसी क्षेत्र से उसी दल की सदस्यता ली और सेवा कार्य में लग गयी । आशा के विपरीत वह रईस घर से ताल्लुक रखती थी । समाज सेवा के कार्यों में उसकी कोई रूचि न होते हुए भी पार्टी में उसको काफी तवज्जो मिलती थी । वह नारायणजी के साथ क्षेत्र में दौरों पर जाने लगी ।  किसी रैली वगैरह के आयोजन में उसको बड़ी जिम्मेदारी मिलती लेकिन वह आशा के जिम्मे सब काम सौंप कर निश्चिन्त हो जाती । सेवाभावी आशा अपनी जिम्मेदारी मानकर पार्टी के सभी काम निस्वार्थ भाव से करती ।
धीरे धीरे तीन साल बीत गए । संगठन में चुनाव होने थे । निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में आशा को महासचिव बनाये जाने की पुरी उम्मीद थी ।
बड़ा उलटफेर करते हुए संगठन में पिंकी को महासचिव का पद दिया गया जबकि आशा को अगले चुनावों तक धीरज रखते हुए पार्टी की सेवा करने की नसीहत दी गयी ।
कुछ ही दिन बाद किसी काम से आशा पार्टी मुख्यालय नारायणजी से मिलने पहुंची । बाहर के कमरे में लगभग दस मिनट तक इंतजार करने के बाद भी जब नारायणजी के दफ्तर का दरवाजा नहीं खुला तो आशा ने आगे बढ़ कर कमरे का दरवाजा थपथपाया । लगभग दो मिनट बाद ही दरवाजा खुला और कमरे से पिंकी उसकी तरफ उपेक्षा से देखते मुस्कुराते हुए चली गयी । उसके अस्तव्यस्त कपडे बंद कमरे का हाल बयान कर रहे थे और अब आशा को पिंकी की महासचिव पद पर नियुक्ति की असली वजह समझ में आ गयी थी ।

आशा नारायणजी को इंकार करके खुद पर गर्व महसुस कर रही थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।