कविता

सवाल थे मेरे

रूपये का पचास पैसा या उनचास पैसा ही लेकर ,अपने पिता के घर से आई स्त्री , महीने के 15 दिन या 13 दिन ही , साल के छ: महीने या चार महीने ही सही , क्या केवल बेटी-बहन बन कर रह सकेगी , पत्नी बहू के मजबूरी से दूर …. मजबूरी ….

पिंजरे प्राची झांकती स्वर्ण रश्मि वो मेरी
तैरो ना एक्वेरियम, मानों सिंधु है वो तेरी
आकार भोग्या जान मान बंदिशों में जकड़े
दे पूनो स्याह शब तट पै एहसान से अकड़े
object अभिसार के कच्चे माल व्यंग्य-विनोद
देने के लिए होते गाली स्त्री यौनिकता प्रमोद
पितृसत्ता का ढ़ोंग बे-कदरी महिमामय स्त्री
स्वत्व कुचलने की श्रम शुरू करती स्व पुत्री

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ