संस्मरण

मेरी कहानी 198

नर्स मेरी पीठ के पीछे दो तकिये रख जाती थी । कुछ दिन बाद सुबह नर्स आई और मुझे मेरी कैबनिट से टूथ पेस्ट और ब्रश निकाल कर मुझे दांत साफ़ करने में मदद करने लगी। इस के बाद वोह मुझे नहलाने लगी, जिस को वे स्पंज करना बोलते हैं। वोह अपने साथ कई तौलिये ले के आई थी। उस ने मुझे स्पंज को साबुन लगा के अपनी कलाइयों को साफ़ करने को बोला। मैंने धीरे धीरे अपने हाथ, कलाइयां और मुंह तौलिये से साफ़ किया। जितना मैं कर सकता था, किया और मेरी पीठ पर उस ने अछि तरह साबुन लगा के तौलिये से साफ कर दिया। मुझे अछि तरह साफ़ करके उस ने मुझे नया गाऊन पहना दिया और हंसती हुई बाई बाई कह के चले गई। इतना बड़ा मेरा ऑपरेशन था लेकिन मुझे कोई ख़ास दर्द नहीं हुई थी, सिर्फ बैड पे करवट लेने से होती थी और करवट लेते समय मुझे बहुत धियान रखना होता था, यह भी एक भय सा होता था कि टांके कहीं खुल ना जाएँ । दर्द ज़्यादा ना होने का कारण, ऑपरेशन करने के वक्त ही सर्जन ने मुझे पूछ लिया था कि पेन से छुटकारा पाने के लिए वोह मेरी पीठ के पीछे स्टिक्कर लगा सकते थे लेकिन इन सटीकरों के साइड इफैक्ट भी थे। यह मेरी मर्ज़ी थी कि मैं स्टीकर लगाऊं या ना लगाऊं। मैंने सटीकर लगाने को बोल दिया था। इस लिए मुझे कोई ख़ास दर्द नहीं हुई थी। दो हफ्ते से ज़्यादा हो गए थे और मैं दिन में कई दफा फ्रेम ले कर कमरे से बाहर आ कर जैनरल वार्ड में चलता फिरता रहता था।
कुलवंत और बच्चे अब सिर्फ शाम को ही मिलने आते थे। मैंने तो उन्हें कहा था कि बेछक वोह शाम को भी ना आएं लेकिन कुलवंत मानती नहीं थी और वोह सभी रोज़ आ जाते थे। अब क्योंकि मेरा खाना नॉर्मल हो गया था, इस लिए कुछ दिन तो मैंने खूब खाया लेकिन अब इतना खा नहीं होता था। खाना, इतनी दफा आता कि मैं तंग आ जाता। सुबह ब्रेकफास्ट ले के बारह बजे लंच आ जाता, जो बहुत होता था और साथ में ही स्वीट डिश होती थी जो बहुत होती थी। फिर डाक्टरों की हदायत के मुताबिक मुझे दिन में दो बोतलें प्रोटीन ड्रिंक की पीनी पड़ती, जो थीं तो बहुत स्वादिष्ट लेकिन मेरा पेट भरा भरा महसूस होता। दो बजे से तीन बजे तक विजटिंग टाइम होता था। यह टाइम ख़तम होने के बाद ही फिर चाय काफी सैंडविच केक या बिस्किट आ जाते। मैं आधा खाता और आधा ट्रे में ही छोड़ देता। शाम को छै से सात बजे तक फिर विजटिंग टाइम आ जाता और टाइम ख़तम होते ही फिर रात का खाना आ जाता। दो तीन घंटे बाद फिर चाय और साथ में सैंडविच या बिस्किट केक होते थे लेकिन मैं इन को लेने से मना कर देता। हैरानी मुझे इस बात की थी कि गोरे लोग इतना खाना खाने के बाद भी नर्सों से और मांग लेते थे । मुझे हैरानी होती कि यह लोग इतना कैसे खा लेते थे।
शायद दो हफ्ते बाद ही डाक्टर मुझे डिस्चार्ज कर देते लेकिन मेरे एक नीचे के सब से आखिर वाले टांके से खून बहने लगा था, इस लिए रोज़ दिन में कई दफा सफाई करके नर्सें नई पट्टी बदलती रहती थीं। तीन हफ्ते बाद खून तकरीबन बंद हो गया और एक दिन डाक्टर की हदायत के अनुसार सारे टाँके खोल दिए गए। जखम भर गए थे लेकिन मेरे पेट की शक्ल ही खराब हो गई थी। थोह्ड़ा थोह्ड़ा मैं रोज़ ही वाकिंग फ्रेम के साथ चलता रहता था लेकिन टाँके खोल देने के बावजूद खींच से होते थे और मुझे एक डर या वहम रहता था कि कहीं टाँके खुल ना जाएँ। जब भी मैं बैड पे लेटता मुझे ऑक्सीजन मास्क लेना पड़ता था जो डाक्टर की हदायत के मुताबक ही था। इस में एक बात और भी थी कि मुझे सांस लेने में तकलीफ होती थी जो शायद दवाइयों का असर होगा। मुझे भय सा लगा रहता था कि मुझे सांस की तकलीफ शुरू ना हो जाए, शायद इस का कारण यह भी था कि मैंने अपने फुफड़ जी को पंप से सांस लेते हुए देखा हुआ था, क्योंकि उन को दमे का रोग था। कुछ भी हो अब कुछ कुछ मैं बेहतर होने लगा था और जी चाहता था कि मैं घर आ जाऊं, लेकिन डाक्टर की मर्ज़ी के बगैर यह असंभव था।
एक दिन O T डिपार्टमेंट से हैड नर्स आई और मुझे बताया कि एक दो दिन में मुझे हस्पताल से छुटी हो जायेगी और मेरे घर जाने से पहले मेरे लिए घर में सहूलियत के लिए कुछ चीज़ें वोह दे देंगे। क्योंकि टॉयलेट सीट पर बैठना मेरे लिए अभी मुश्किल था, इस लिए नर्स ने एक स्पैशल टॉयलेट सीट मुझे दिखाई कि इस को मेरे घर की टॉयलेट सीट के ऊपर फिक्स कर दिया जाएगा ताकि टॉयलेट सीट ऊंची हो जाए और मेरा बैठना आसान हो जाएगा। इस के लिए एक नर्स घर आएगी और यह सीट फिट कर देगी। दूसरा उस ने मुझे एक स्पैशल चेअर की फोटो दिखाई जो ऊंची नीची अपनी जरुरत के हिसाब से की जा सकती थी, जिस पर बैठ कर मैंने रोज़ाना स्नान करना था और यह चेअर भी नर्स मेरे घर छोड़ जायेगी। फिर उस ने मुझे पुछा कि मेरे घर में मेरे सोने के लिए बैड कैसी थी, इस का असैसमैंट नर्स घर आके करेगी और यह भी बताया कि हर रोज़ नर्स मेरे घर आ के मेरे जखम की ड्रैसिंग करने आएगी और एक नर्स और आएगी जो मुझे इस स्पैशल चेअर पर बिठा के स्नान कराएगी और मेरे कपडे पहनाएगी और थोह्ड़ी थोह्ड़ी एक्सरसाइज़ भी कराएगी। और भी काफी कुछ बताया लेकिन मुझे अब याद नहीं।
इस के दो दिन बाद डाक्टर आया और मुझे बोला कि कल को मैं घर जा सकता हूँ, अगर मेरे पास ट्रांसपोर्ट का इंतज़ाम नहीं है तो हस्पताल की वैन मुझे छोड़ आएगी। मैंने डाक्टर को वैन में जाने को बोल दिया क्योंकि संदीप और जसविंदर ने तो काम पर होना था। डाक्टर के जाते ही मैंने कुलवंत को मोबाइल पे धीरे धीरे समझाया कि कल को मुझे हस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा और वोह मेरे लिये नए कपड़े लेती आये। आज मेरा सारा दिन ख़ुशी ख़ुशी बीत गया, अपने घर जाने की भी क्या ख़ुशी होती है ! शाम को कुलवंत मेरे नए कपड़े ले आई और पुराने कपडे बैग में रख लिए । आज सभी पर्सन थे। ऑपरेशन ठीक ठीक हो गया था और एक बात की और भी मुझे ख़ुशी थी, जब मेरा ऑपरेशन हो गया था तो सर्जन के उस वक्त के बोल मुझे अभी तक याद थे, ” गुरमेल इट वाज़ ओनली अपैंडिक्स ऐंड इट विल नैवर कम बैक “,इस से मुझे तसल्ली थी कि अब ज़ख्म ठीक होने को ही वक्त लगना था और दुबारा यह तकलीफ मुझे कभी नहीं होगी । आज विजटिंग टाइम जल्दी बीत गया, कुलवंत को भी इतने दिन मुसीबत सहनी पड़ी थी क्योंकि हर रोज़ आना कोई आसान तो होता नहीं और कुलवंत पोतों को भी स्कूल छोड़ने जाती थी और फिर उन को खाने को भी देना, काफी मुश्किल भरे दिन थे। आज मैं बहुत खुश इस लिए भी था कि घर जा कर जी भर के सोऊंगा क्योंकि हस्पताल में इतनी नींद आती ही नहीं क्योंकि सारी रात तो नर्सों की भाग दौड़ लगी रहती है।
दुसरी सुबह दस बजे वोह डाक्टर मेरे वार्ड में आ गया, जिस ने मुझे डिस्चार्ज करना था। उस के पास एक फ़ाइल थी, जिस में बहुत से फ़ार्म थे। कोई पंदरां बीस मिंट वोह इन फार्मों पे कुछ लिखता रहा। फिर उस ने एक फ़ार्म पर मेरे दस्तखत कराये और उठ कर जाने से पहले मुझे बोल गया कि मैं तैयार रहूँ और वैन ड्राइवर आ के मुझे मेरे घर छोड़ आएगा। कोई एक घंटा मैं कुर्सी पर बैठा रहा और बोर सा हो गया। तभी अचानक यूनिफार्म पहने हुए वैन ड्राइवर, वीह्ल चेअर घसीटते हुए आ गया और मेरी ओर आते ही बोला, ” रैडी मिस्टर बामरा ?”, मैंने मुस्करा कर उस को हैलो बोला और वोह वीह्ल चेअर मेरे पास ले आया। मैं चेअर की आरम्ज़ को मज़बूती से पकड़ कर उठा और ड्राइवर ने मुझे पकड़ कर धीरे धीरे वीह्ल चेअर पर बिठा दिया। हैड नर्स आ गई थी, उस के हाथ में एक फ़ार्म था, ड्राइवर ने उस फ़ार्म पर साइन कर दिए और मेरी वीह्ल चेअर धकेलते हुए चल पड़ा। कुछ देर वोह कारीडोर में चलता रहा और फिर बाहर जाने वाले दरवाज़े से कार पार्क में आ गया। बाहर धुप खिली हुई थी। वैन नज़दीक ही थी और वैन की बैक डोर पर एक नर्स जो उस की असिस्टैंट थी, ने वैन की लिफ्ट को नीचे ला दिया। ड्राइवर ने वीह्ल चेअर को लिफ्ट पे पार्क कर दिया और नर्स ने बटन दबा कर लिफ्ट को ऊपर उठा दिया। अब ड्राइवर वैन की दूसरी डोर से वैन के अंदर आ गया था और वोह मेरी वीह्ल चेअर को धकेल कर एक सीट के नज़दीक ले आया और मुझे वीह्ल चेअर से उठा कर वैन की सीट पर बिठा दिया। वैन में कोई बीस सीटें होंगी और मुझ से पहले भी दस बारह गोरे गोरीआं बैठे थे, जिन्हों को वे हस्पताल के दूसरे वार्डों से ले कर आये थे। वैन चल पढ़ी और वोह एक और वार्ड के नज़दीक चले गए और ड्राइवर वीह्ल चेअर ले कर उस वार्ड में जा के एक और पेशैंट को ले आया। इसी तरह वोह दो और वार्डों में जा कर दो और मरीजों को ले आये और अब वैन सड़क पर आ गई। चलती हुई वैन के शीशों से मैं बाहर के नज़ारे देख रहा था।
सोच रहा था कि पंदरां मिंट में मैं घर पहुँच जाऊँगा लेकिन मैं कुछ हैरान सा हुआ, जब वैन दुसरी ओर जाने लगी। वैन वैस्ट पार्क हस्पताल की कार पार्क में आ कर खड़ी हो गई, और नर्स ने वैन का पिछ्ला दरवाज़ा खोल कर लिफ्ट को नीचे कर दिया और ड्राइवर एक मरीज़ को वीह्ल चेअर में बिठा कर बाहर आ गया और मरीज़ को हस्पताल के भीतर ले गया। अब मैं समझ गया था कि मरीजों को एक दूसरे हस्पताल में अक्सर शिफ्ट कर दिया जाता है। कोई दस मिंट में ही ड्राइवर आ गया और वैन में बैठ कर वैन चलाने लगा। दस मिंट में ही वैन मेरे घर के सामने खड़ी थी। कुलवंत खिड़की में से देख ही रही थी और बाहर आ कर उस ने ड्राइवर को बोला की वोह वीह्ल चेअर घर की पिछली ओर ले आये क्योंकि पिछला दरवाज़ा कुछ बड़ा था और वीह्ल चेअर अंदर ले आना आसान था। ड्राइवर ने पांच मिंट लगाए और मुझे भीतर छोड़ गया। जब मैं अपनी इलैक्ट्रिक चेअर में बैठा तो इर्द गिर्द देखा, कमरे में वैलकम होम के पोस्टर लगे हुए थे। मुझे अपना दुःख भूल गया और एक अंतरीव ख़ुशी का अहसास सा हुआ। बच्चे काम पे गए हुए थे और पोते स्कूल में थे। कुलवंत ने चाय बनाई और साथ में कुछ खाया। अभी एक घंटा ही हुआ था, O T डिपार्टमैंट की ओर से एक नर्स आ गई, जिस की गाड़ी में मेरे लिए टॉयलेट सीट और नहाने के लिए स्पेशल चेअर थी। पहले उस ने आ कर शावर रूम देखा, जिस में उस ने चेअर रखनी थी, फिर एक टॉयलेट पर सीट फिट कर दी। इस के बाद उस ने मेरी बैड देखि और उस ने कहा कि बैड पर से उठने और लेटने के लिए वोह बैड के साथ एक स्पैशल हैंडल फिट कर देगी, जिस को पकड़ कर मेरे लिए बैड पे लेटना और उठना आसान हो जाएगा।
अब उस ने धीरे धीरे सारा सामान गाड़ी में से निकाला। नहाने के लिए जो चेअर थी, वोह एक बॉक्स में थी जो बिलकुल नई और डिसमैंटल करके पैक की हुई थी। उस ने सारे पार्ट्स निकाले और कोई आधे घंटे में चेअर कम्प्लीट कर दी जिस के नीचे चार वील थे। दोनों तरफ पैर रखने के लिए दो छोटे छोटे पैडल से बने हुए थे। अब वोह इस चेअर को धकेल कर शावर रूम में रख आई और आ कर बोली कि शावर रूम में मेरी सेफ्टी के लिए कोई गरैब हैंडल नहीं है, वोह अपने डिपार्टमेंट को बता देगी और उन का मकैनिक आके हैंडल फिट कर जाएगा। अब वोह बैड रूम में चले गई और बैड के साथ उस ने एक सुन्दर हैंडल लगा दिया जो कभी भी हम अपनी मर्ज़ी के मुताबक ऐडजस्ट कर सकते थे। जाने से पहले वोह हमें बता गई कि कल से एक नर्स मेरी ड्रैसिंग यानी पट्टी बदलने के लिए आया करेगी और एक नर्स हर रोज़ मुझे नहलाने आएगी।
तीन बजे कुलवंत पोतों को स्कूल से लेने के लिए चली गई। जब पोते आ गए तो उन को देख कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई और वोह भी मुझे देख कर बहुत खुश हो गए। शाम को संदीप और जसविंदर भी आ गए। बातें करते करते और खाना खाते हुए सात बज गए। कुलवंत ने मेरे सोने का इंतज़ाम नीचे किया हुआ था। हमारे बैड रूम ऊपर हैं। इस लिए मैने कहा कि मैं ऊपर बैड रूम में ही जाने की कोशिश करूँगा। सीड़ीओं के दोनों तरफ की रेलिंग को पकड़ पकड़ कर मैं धीरे धीरे चढ़ ही गया और बैड के हैंडल को पकड़ कर बड़े धिआन से लेट गया। इतने दिनों बाद मैं अपनी बैड पर सोया था, लेट कर एक आनंद का अहसास सा हुआ। वैसे भी मैं कहीं भी जाऊं मुझे अपने घर आ कर अपनी बैड पर ही मज़ेदार नींद आती है। आज रात मैं इतना सोया कि सुबह बहुत देर से उठा। कुलवंत हंस रही थी कि, ” आप सारी रात बड़े बड़े खुराटे लगाते रहे ” और मैं हंस पड़ा। चलता. . . . . . . .