कहानी

हकीकत

मीरा!मीरा!
कितनी बार तुम्हें कहा है आवाज़ लगाओ तो कम से कम कोई जबाब तो दे दिया करो, पर तुम्हें टी.वी.और मोबाईल से फुर्सत ही नहीं मिलती। दादी ने मीरा के पास आकर बोला, शायद हकीकत भी यही थी।
मीरा पर तो किसी बात का कोई असर नहीं था, अगर दादी बोलती थी तो मीरा भीआगे से चार बाते सुनाकर और पुराने ज़माने के लोग हो आप मेरे पास वक्त नहीं है आपकी बाते सुनने का बहुत काम है मुझे और सब का ताना देकर अपने कमरे में चली जाती या जीन्स और शाट् टॉप पहन कर स्कूटी लेकर अपनी सहेलियों के साथ कहीं घूमने चली जाती। अवि का भी यही हाल था वो भी मीरा की तरह बस अपने बालों को सैट करके स्टाइलईश कपड़े जीन्स जो घुटनो से फटी सी लगती थी ऐसा दादी कहती थी कि अवि यह क्या फटी सी गन्दी सी लगने वाली जीन्स तू नई खरीद कर लाता है यह नई तो कहीं से नहीं लगती है, और बालों को खड़ा क्यों करता है बेटा बिल्कुल अच्छे नहीं लगते पर दादी की बाते किसी को अच्छी नहीं लगती थी और अवि भी मोटरसाइकिल पर सवार होकर बिना हैलमेट के भाग जाता क्योंकि इससे बाल भी खराब हो जाते थे। दादी सोचती थी आखिर इनको क्या हो गया बहु और राज तो इनको कुछ नहीं कहते बल्कि मुझे ही चुप करा देते हैं कि आपने क्या लेना देना आप क्यो दखल देते हो सबकी अपनी ज़िन्दगी है जीने दो अपनी मर्ज़ी से। बहु को तो खुद शौक थे वो भी जीन्स पहन कर किटी में जाती या कभी डिस्को राज भी कभी मना नहीं करते थे कभी दादी को लगता था कि घर का क्या माहौल हो गया है सब अपनी मनमानी करते हैं घर की बहु सारा दिन बाल सहलाती है या मोबाइल पर और लैपटॉप पर लगी रहती है वही हाल राज और बच्चों का है मैं तो ऐसे ही हूँ, कभी बहुत बुरा लगता है यह सब देख कर हद हो जाती है तो कुछ बोलने लगूं तो कहा जाता है कि आपने क्या लेना है आप क्यों दखल देते हो हमारी निजि ज़िन्दगी है। मेरे पास बैठने का या मेरे दिल की बात सुनने का किसी के पास वक्त ही नहीं है मुझसे बस ऐसे ही बात की जाती है, लेकिन हाँ कोई घर पर आए या किसी के सामने अच्छे होने का और मेरा मान सम्मान करने का दिखावा ज़रूर किया जाता है यह भी कहा जाता है कि बड़ों से पूछ कर ही सब करते हैं। दादी कभी कभी तो रो देती थी कि मेरी घर में क्या जगह है सिर्फ घर का ध्यान रखने की सभी ने कहीं न कहीं जाना होता था। दादी घर पर ही रहती थी अकसर, कोई ज़रुरी काम में या बात में मेरी राय तक जानना ज़रुरी नहीं समझा जाता क्योंकि मेरे ख्यालात पुराने है और मैं गल्त बात के लिए रोकती हूँ या समझा देतीहूँ अपना समझ कर। फिर दादी खुद को कोसती थी कि सच में मुझे कुछ नहीं कहना चाहिए जो हो रहा है बस देखते रहना चाहिए मूक दर्शक की तरह, पर तब भी उनके साथ ऐसा ही बर्ताब होता था। वक्त के साथ बदलना चाहिए पर क्या इस हद तक?
दादी समझती थी कि हकीकत यहीहै ,पर कभी कभी हकीकत को नज़र अंदाज़ कर हम जिन्दगी में खुशी के लिए या जीने के लिए वो माहौल तलाशते है।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |