हास्य व्यंग्य

हास्य व्यंग्य : कलरलेस होली

बिहार मे फागुन के उमंग पर जैसे शनि की कुदृष्टि पर चुकी है।एक समय था जब होली मे यहां के प्राणि पौवा-अद्धा के झोंक मे बौराए फिरते थे। मत मारी गई जनाब की जो उन्होंने होली के मुख्य पेय पर कानूनी प्रतिबंध लगवा दिया।अब बिना मदिरा के होली की स्थिति तो वैसी ही होगी जैसे रेनकोट पहनकर बाथरूम मे स्नान किया जाय।एक तो नोटबंदी उसपर वाइनलेश होली स्थिति काफी सोचनीय है बिहार की।केन्द्र सरकार की “लेस” योजना पर यदि कोई राज्य यदि गंभीर है तो वो बिहार ही है।अर्थव्यवस्था क्षेत्र मे कैशलेस हो या सामाजिक क्षेत्र मे वाइनलेस व्यवस्था।इसके साथ साथ हर क्षेत्र मे “लेस” योजना को मानक बना लिया गया है बिहार मे ।मसलन “मेरिट लेस डिग्री” “नाॅलेज लेस सरकारी नौकरी” आदि आदि।माननीय मोदी जी द्वारा मन की बात के तहत कही गई सूक्ति “स्माइल मोर स्कोर मोर” का व्यवहारिक प्रयोग गत दिनों बिहार मे जोरों पर रही।

सनद रहे कि वर्तमान मे परीक्षा का सीजन चल रहा है और पीएम साहब ने परिक्षार्थियों के उत्साह वर्द्धन हेतु “स्माइल मोर स्कोर मोर”पंक्तियों का प्रयोग एवं परीक्षा को उत्सव की तरह समझने की चर्चा मन की बात के तहत की थी।कुछ दिनों पूर्व बिहार मे इंटरस्तरीय पदों पर कर्मचारियों के बहाली हेतु चार चरणों मे प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन भी किया गया था।जिसमें दो चरण की परीक्षाएं संपन्न हो चुकी थी।जिसमे बिहार कर्मचारी चयन आयोग उक्त पंक्तियों को चरितार्थ करने मे एड़ी चोटी का जोर लगा दिया।हाईटेक युग मे बिहार की शिक्षा व्यवस्था का कोई सानी नही है।परीक्षाहाल मे प्रश्न पत्र आने से बारह घंटे पहले यहां मार्केट मे हलसहित प्रश्नपत्र उपलब्ध हो गया ।प्रश्नपत्र की कीमत भी मल्टीप्लेक्स सिनेमा हाल के टिकट से लेकर पापकाॅर्न के बीयरेबल रेट पर उपलब्ध थी।इस दौरान कुछ डिजिटल मुन्ना भाई वायरल प्रश्नपत्रों के साथ पकड़े गए तो कुछ शिक्षा माफिया गैंग के गुर्गे भी पुलिस के हत्थे चढ़े।बावजूद इसके परीक्षा से पूर्व प्रश्नपत्र छोले भटूरे की तरह बाजारों मे बिकने लगे।अब जिन्हें परीक्षा पूर्व हल सहित पेपर मिला उनके लिए तो परीक्षा  उत्सव की तरह थी और  दाल-भात-चोखा खा कर दिन रात  मेहनत करने छात्र के लिए यह किसी मातम से कम ना था।रोजगार व शिक्षा के क्षेत्र मे पिछड़े  बिहार मे सरकारी नौकरी की स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली होती है।यहां कोई भी सरकारी नियोजन की प्रक्रिया किसी पंचवर्षीय योजना या पंचवर्षीय चुनाव की आवधिक स्थिति से कम नही होती है।

यधपि राज्य कर्मचारी चयन आयोग द्वारा प्रतियोगिता परीक्षा के संचालन मे चाकचौबंद तो ऐसा होता है कि परिंदा भी पर ना मार सकें मसलन परीक्षा के दौरान विडियोग्राफी,जैमर का प्रयोग, बायोमेट्रिक जांच, पोस्टकार्ड साइज फोटो आदि कई सुरक्षात्मक उपाय आपनाई जाती है बावजूद इसके 4 जी स्पीड से पेपर का लीक हो जाना शिक्षा माफिया की पैरवी पहुँच व योग्यता तथा आयोग की विश्वसनीयता व उत्कृष्टता को रेखांकित करता है।  जी हां बुद्ध, महावीर,  कौटिल्य,आर्यभट्ट, की ज्ञानभूमि ये वही बिहार है जहाँ कभी इतिहास मे फाहियान ह्वेनसांग सदृश  विदेशी शिक्षार्थी व छात्र शिक्षा ग्रहण करने पाटलीपुत्र आया करते थे।शिक्षार्थियों का आगमन तो वर्तमान डिजिटल युग मे भी होता है लेकिन बिना पढ़ाई के डिग्री व नौकरी लेने के लिए।

समय समय आलाकमान की छत्रछाया मे  रंजीत डान, लालकेश्वर बाबू परमेश्वर बाबू जैसे महापुरुष इन इच्छुक जरूरत मंदो की आवश्यक्ता को पुरा करने मे भरपूर मदद करते है।उदाहरण स्वरूप पिछले  वर्ष बिहार मे गोबर गणेश टाइप ऐसे छात्र-छात्रा राज्य टापर बन गए जिन्होंने कभी पाठशाला का मुंह भी नही देखा था। बिहार मे पैसे पर डिग्री व नौकरी का विश्वसनीय बिजनेस काफी दिनों से फल-फूल रहा है। जाहिर सी बात है पैसेवाले को डिग्री/नौकरी चाहिए और नियोजनकर्ता को पैसे।सो दोनों एक दुसरे की जरूरत को पुरा कर यहां सामाजिक-शैक्षणिक-आर्थिक संतुलन को बनाए रखते है।रही बात मेधावी व मेहनती छात्रों की तो उनके पास मेधा है उन्हें बिहार के बाहर अन्य राज्यों या रेलवे, बैंकिंग आदि क्षेत्रों मे भाग्य आजमाइश कर नौकरी हासिल करने का पुरा पुरा  मौका देते है ये जरूरतमंद।

पीड़ित छात्र पहले तो गुहार लगाते है याचना करते है।न्याय ना मिलने पर आंदोलन करते है।और जब पानी गले से उपर होने लगता है तो आयोग के सचिवस्तरीय अधिकारियों के साथ बिहारी दंगल का नुमाइश करने से गुरेज भी नहीं करते है।अभी महज दो चरणों की परीक्षा ही संपन्न हुई थी जिसमें पेपर लीक, एफआईआर,सेटर की गिरफ्तारी,एसआइटी का गठन आयोग के कर्मचारियों एवं छात्रों  के बीच “लत्तम-जूतम” एसएससी सचिव का निलंबन तक हो गया और अंततः परीक्षा स्थगित।इस पुरे प्रकरण मे चर्चा व चिंता का विषय मेरिट वाले योग्य छात्र ही  रहे।जबकि नोटबंदी के इस विषम परिवेश मे भी अरबों रूपये के इस शिक्षा खेल मे  दाँव  लगाने वाले तथाकथित उन हजारों मासूम छात्रों के बारे मे सोचने वाला कोई नही जिनका लाखों रूपया सेटर के पास “भेल्युलेस”  उज्ज्वल भविष्य”ऐमलेस” तथा रंगीन होली”कलरलेस”हो गया।

@ विनोद कुमार विक्की

विनोद कुमार विक्की

शिक्षा:-एमएससी(बी.एड.) स्वतंत्र पत्रकार सह व्यंग्यकार, महेशखूंट बाजार, खगडिया (बिहार) 851213