तेरे अहसास लेकर बनाई गज़ल
फिर तरन्नुम ने तेरे सजाई गज़ल।
हम चले ढूंढने हर्फ औ खो गए
तेरी आंखों में दी तब दिखाई गज़ल।
माँ ने बाँधी दुआ जब भी दामन मेरे
तो ख़ुदा की लगी रहनुमाई गज़ल।
बेटियां जब चली माँ का घर छोड़ कर
गुनगुनाने लगी थी विदाई गज़ल।
था गुमां जीत लेंगे सफ़र जिंदगी
वक्त ने तब पलट कर सिखाई गज़ल।
भूख से जाके कोई निवाला मिला
तब जहन में “तनुज” मुस्कुराई गज़ल।
— सतीश मैथिल ‘तनुज’