गीत/नवगीत

मोहन कूँ देखन कूँ

मोहन कूँ देखन कूँ, तरसि जातु मनुआँ;
देखन जसुमति न देत, गोद रखति गहिया !
दूर रखन कबहुँ चहति, प्रीति करति खुदिइ रहत;
डरति रहति उरहि रखति, गावत कछु रहिया !
थकति कबहुँ रुसति कबहुँ, नाचत थिरकत कबहुक;
चाहत चिर रूप लखन, व्यस्त कबहुँ रह मैया !
सृष्टि कौ सृष्टा कौ, द्रष्टा कौ देवन कौ;
श्याम रह्यौ मन मन कौ, प्यारौ कन्हैया !
सब तरंग बा के अंग, सकल अंग बा कौ रंग;
‘मधु’ खोवत नेत्र संग, हिय लें गलबहियाँ !