सामाजिक

गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा के लिए सभी गौरक्षक दोषी नहीं

हाल ही के दिनों में बीफ यानी गौमांस और गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा गया है कि गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दूसरी ओर विपक्षी दल और मुस्लिम संगठन हिन्दू राष्ट्रवादियों के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। वैसे यह सही है कि किसी भी तरह की हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता किन्तु एक बात अवश्य है कि कुछ लोगों की नादानियों के कारण गौरक्षा के मूल संकल्प को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। यहाँ यह भी विचार किया जाना चाहिए कि इस मुद्दे को हवा देने के पीछे कहीं कोई षड़यंत्र तो नहीं है!
गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। गाय भी उसी तरह पूज्य है जिस तरह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द पूज्य हैं। कहा भी गया है कि मातरःसर्वभूतानां गावः यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। हम गाय को गौमाता कहते हैं। वेद हो या पुराण , सभी में गौ को पूजनीय बताने के साथ संसार की संरक्षिका भी बताया गया है। ऋग्वेद के ऋषि अग्नि के अन्तःकरण में परमपिता परमेश्वर के शब्द गौमाता के प्रति दृष्टव्य हैं-
माता रूद्राणाम् दुहिता वसुनाम स्वसादित्यानाम मृतस्य नाभिः।
प्रनुवोचं चिकितुषे जनायः मा गामनागामदितिम् वधिष्ट। ”
अर्थात् प्रत्येक चेतना वाले विचारशील मनुष्य को मैंने यही समझाकर कहा है कि निरपराध गौ को कभी मत मारो क्योंकि वह रूद्र देवों की माता है, वसुदेवों की कन्या है और आदित्य देवों की बहन तथा धृत रूप अमरत्व का केन्द्र है।
सनातन धर्मग्रन्थों में मान्यता है कि- “सर्वे देवाः स्थिता देहेसर्वदेवमयीहि गौः”, यानी गाय की देह में समस्त देवी देवताओं का वास माना गया है। पद्यपुराण में उल्लेख है कि गाय के मुख में चारों वेदों का निवास है। गाय के अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं को स्थित होना बताया गया है। भविष्य पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण , महाभारत में भी गौ के अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति को दर्शाया गया है।
तात्पर्य यही है कि सनातन धर्म में गौ यानी गाय को केवल दूध देने वाला पशु न मानकर उसे देवत्व का स्थान दिया गया है। गाय को पवित्र माना गया है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जो चौदह रत्न प्रकट हुए उनमें से गौ ‘कामधेनु’ भी एक रत्न है। गाय अहिंसा, करूणा, ममत्व, वात्सल्यादि दिव्यगुणों का प्रतिनिधित्व करती है। माना जाता है कि गाय में तैतीस कोटि देवताओं का वास है। संभवतःइसीलिए हिन्दु धर्म के अनुसार गाय को किसी भी रूप में सताना घोर पाप माना गया है और यही कारण है कि गौहत्या करना नर्क के द्वार खोलने के समान माना गया है।
अथर्ववेद में लिखा है- ‘धेनु सदानाम रईनाम’ अर्थात् गाय समृद्धि का मूल स्त्रोत है। इन सबका निष्कर्ष यही है कि गाय हिन्दुओं की आस्था की प्रतीक है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिक भी मानते हैं कि गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो आक्सीजन ग्रहण करता है और आक्सीजन छोड़ता है। उसके मल-मूत्र में औषधीय गुण समाविष्ट हैं। जब गाय इतनी विशिष्ट गुणधारी पशु है तो स्वाभाविक है कि वह अपने नैसर्गिक गुणों और धार्मिक मान्यताओं के कारण हिंदु धर्मावलम्बियों में विशिष्ट स्थान रखती है। विदेशी आततायियों के आने के बाद हो सकता है कि विभिन्न स्थानों में गौवंश के प्रति स्थापित मान्यताओं और अवधारणाओं में कुछ बदलाव आया हो किन्तु यह स्थापित सत्य है कि गौवंश आज भी हिन्दू समाज की आस्था और विश्वास का प्रतीक है और उसपर होने वाले आक्रमण या अत्याचार पर प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है।
निःसंदेह प्रतिक्रियाऐं हिंसक नहीं होना चाहिए किन्तु इसपर बिना किसी पूर्वाग्रह के निष्पक्षता के साथ विचार किया जाना चाहिए। सरकारी तंत्र भी अपना कर्तव्य यदि निष्पक्षता और पूर्ण मुस्तैदी के साथ निभाये तो हिंसा की संभावना कम हो सकती है। सरकार की अपनी नीतियाँ भी गौवंश के बारे में युक्तिसंगत होना चाहिए। गलत नीतियों का परिणाम भी हमारे सामने है कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा हो रही है, हत्याऐं हो रही हैं किन्तु इसके लिए सभी गौरक्षकों को बदनाम करना कहाँ तक उचित है!जहाँ एक ओर यह कहा जाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है और इसे धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए तब दूसरी ओर गौरक्षा के नाम पर की जाने वाली राजनीति का धर्म कैसे निर्धारित किया जा सकता है। वास्तविक गौरक्षक तो अपना काम बिना प्रचार-प्रसार के कर ही रहे हैं। गौ शालाऐं, गौ सदनों में जाकर देखें कि सच्चाई क्या है, कितने सेवाभाव के साथ गौवंश की सेवा की जा रही है। ऐसे में सभी गौरक्षकों को बदनाम करना कहाँ तक उचित है। उनकी भावनाओं, कर्तव्यपरायणता और आस्था को ठेस पहुँचाना कहाँ तक न्यायसंगत है।
इन सबके बीच एक नकारात्मक पक्ष यह भी है कि गौवंश की वर्तमान स्थिति के लिए हिन्दू धर्मावलम्बी भी कम दोषी नहीं हैं। यदि गौ माता पूजनीय है तो क्यों उसे सड़कों पर दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया है, उसके चारे-पानी की व्यवस्था न कर पॉलीथीन और गंदगी खाने पर कौन मजबूर कर रहा है!दुधारु पशु को तो हम रख लेते हैं, अनुपयोगी, कमजोर, वृद्ध, लाचार पशुओं को कसाई के हवाले कर देते हैं। सबसे पहले तो हमें अपना घर सुधारना होगा। दूसरों को दोष देने से काम नहीं चलेगा। क्या गौवंश के सही लालन-पालन और पोषण के लिए गौरक्षकों द्वारा एक आंदोलन की रुपरेखा तैयार नहीं की जाना चाहिए जिसमें हिन्दू समाज को जागृत किये जाने का प्रावधान हो। यदि हिन्दू समाज जागृत हो जाता है और गाय के प्रति अपनी आस्था के अनुरूप व्यवहार भी करने लगता है तो कोई कारण नहीं दिखाई देता जिसमें गौरक्षा के लिए किसी को हिंसा का सहारा लेना पड़े। सर्वाधिक प्राथमिकता का कार्य तो गौवंश के संरक्षण , संवर्धन और पोषण का है। हमारी आस्था बनावटी या दिखावटी न हो, यह हमें साबित भी करना होगा वरना गौवंश भी राजनीति का मोहरा बनकर रह जाएगा और गौरक्षा के नाम पर हिंसा का सहारा लेकर लोगों में फूट डाली जाती रहेगी तथा अपने हित साधने के कुत्सित प्रयास होते रहेंगे।

डॉ प्रदीप उपाध्याय

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009